Wednesday, November 2, 2016

फटी हुई पुस्तक


दायें तरफ की पड़ोसिन ने फोन किया और पूछा क्या वह क्लब की कमेटी में है, उसने कहा, नहीं, और फिर कहा इस बार नहीं. वर्षों पहले एक ही बार वह कमेटी में थी, प्रोजेक्ट कन्वेनर तीन साल से है, लेकिन उसकी बात से लग रहा था जैसे वह हमेशा ही रहती है पर इस बार नहीं. मन कितना झूठ बोलता है, अपने आपको कुछ दिखाने के लिए, फिर यह भी कहा कि मीटिंग में देर से जाकर जल्दी आ गयी, जबकि सारा समय वह लाइब्रेरी में ही बैठी रही. मन को झूठ बोलने में सोचना भी नहीं पड़ता. अपनी इमेज बनाये रखने के लिए कितने झूठ बोलता चला जाता है. झूठी इमेज की रक्षा के लिए झूठ के सिवा और साधन हो भी क्या सकते हैं. आज सुबह का अंतिम स्वप्न बड़ा मजे का था. उसने एक पुस्तक नींद में फाड़ दी है पर जिसकी है उसे तो लौटानी होगी सो सेलो टेप लगाकर जोड़ने का प्रयास कर रही है, पर जुड़ना कठिन है सो परेशान होकर नींद खुल जाती है व ठीक अगले ही पल अलार्म बजता है, बल्कि उस क्षण मन में यह विचार आया अब अलार्म बजेगा और ऐसा ही हुआ. तभी बंद आँखों के आगे प्रकाश नृत्य करने लगा, यह परमात्मा के आने का ढंग है, सुबह सन्ध्याकाल में वह इसी तरह मिलने आता है. फिर उसने उससे बात भी की. सुबह उठते ही कुछ पंक्तियाँ उसने लिखीं क्योंकि बाद में वे भाव ओस की बूंदों की तरह उड़ जाते हैं ! कितनी देर तक तो वह भीतर अपनी उपस्थिति जाहिर किये रहा फिर मन पर पर्दे छाते चले गये और वह छुप गया, उनके पीछे, झूठ, अहंकार और अज्ञान के पर्दे ! शाम को सूप उसकी असावधानी से कुर्ती पर गिर गया पर मन ने झट कह दिया कि मैच देखते समय उसका ध्यान विकेट की तरफ था सो..कितना चालाक है उसका मन, एक क्षण में कैसे-कैसे बहाने गढ़ लेता है.पर उसे पता चल गया था, उसके भीतर कोई जाग रहा है जो सब जानता है !

आज सुबह फिर चमत्कार घटा, आज्ञा चक्र पर ज्योति जल रही थी, एक दीपक की लौ, नींद खुली और विचार आया, अब अलार्म बजेगा और वही हुआ, ठीक चार बजे कोई जगा देता है, वही जो भीतर जाग रहा है. परमात्मा उसे धीरे-धीरे अपने नजदीक ले रहा है, पहले वह उसे पुकारती थी अब वह खुद उसे बुलाता है, उसने अपने को प्रकट कर दिया है. उसके अहंकार को चूर करने के उसके प्रयास भी जारी हैं. उसे अपने भीतर सूक्ष्म से सूक्ष्म विकार भी स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं. सभी के भीतर उसी की ज्योति भी दिखाई देती है, किसी को तिलमात्र भी चोट पहुँचाने पर भीतर कैसी पीड़ा जगती है जैसे खुद को ही सताया हो..वे सब एक ही हैं, इस बात का अनुभव भी हो रहा है. अब सारी कामनाएं एक ही केंद्र पर केन्द्रित हो गयी हैं. वह परमात्मा इसी जन्म में उसे मुक्त कर दे. इस में बाधा उसके पूर्व संस्कार हैं व प्रारब्ध कर्म, लेकिन सद्गुरू की कृपा का अक्षय भंडार भी तो साथ है. आज सत्संग है, वे भजन गायेंगे, ध्यान करेंगे और परमात्मा को अपने सारे गुण-अवगुण समर्पित कर देंगे, खाली होकर बैठ रहेंगे फिर वही वह रहेगा, वह एकछत्र साम्राज्य चाहता है..दो दिन बाद नन्हा आ रहा है, उससे भी अध्यात्म पर चर्चा होगी. मुरारी बापू बाबा रामदेव के पतंजलि आश्रम में कथा कर रहे हैं. वे पतंजलि के योग सूत्रों का रामचरित मानस के आधार पर वर्णन कर रहे हैं. यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि ! ये आठ अंग रामायण के सात कांडों में व्यक्त हुए हैं ! वह कह रहे हैं कृपा का पात्र बनना है, अंतर घट को पावन करना है, उसे सीधा करना है तथा उसके छिद्रों को पूरना है.

सुबह अलार्म बजा तो वह पहले से ही जगी थी, परमात्मा को जगाने नहीं आना पड़ा, वैसे भी वह कहीं दूर तो है नहीं जो उसे आना पड़े. वह उनकी आत्मा ही तो है, प्रकाश उसका स्वरूप है, शांति, आनंद, प्रेम, सुख, शक्ति, ज्ञान तथा पवित्रता उसके गुण हैं, जिनके अनंत प्रकार हैं. वह परमात्मा छिपा नहीं है पर उनकी दृष्टि पर ही मोटे-मोटे पर्दे पड़े हैं. उसे देखने के लिए अंतर की आँख चाहिए. कल दिन भर जून ठीक रहे पर शाम को नन्हे का फोन आ गया. वह बंगलूरू में एक घर खरीदने की सोच रहे हैं. उनको भी अपनी स्वतन्त्रता उतनी ही प्रिय है जितनी उसे. कल आभास हुआ कि किसी को जब वे सलाह देते हैं तो उसे कैसे चुभती है, कोई भी नहीं चाहता कि कोई और उसे बताये कि उसके लिए क्या ठीक है, उसे क्या करना चाहिए. अब जबकि वह तथाकथित साधना कर रही है, अहंकार को विसर्जित करना जिसकी पहली शर्त है, उसे कितना नागवार गुजरा चाहे पल भर को ही, क्योंकि तुरंत भीतर वाले ने सचेत कर दिया, लेकिन अब उसे कान पकड़ लेने हैं, किसी को भूल कर भी कोई सलाह नहीं देनी है, क्योंकि उन्हें दी गयी पीड़ा उसे ही मिलने वाली है, अंततः वे जुड़े हए हैं. जून का उसे सम्मान करना करना है और उनकी रजोगुणी प्रवृत्ति स्वत: ही सतोगुण में बदलेगी, वैसे ही नन्हे की भी, वह ऊपर उठ रहा है, उसे तो केवल खुद को देखना है, भीतर कोई दम्भ न रहे, पाखंड न रहे, भेद न रहे, खाली हो जाये मन..तभी तो उस परमात्मा को भरा जा सकता है..सारी इच्छाएं बस इसी एक में मिल गयी हैं..एक ही काम है लिखना, पढ़ना और सुनना..   


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