Thursday, October 27, 2016

महिला आरक्षण विधेयक


महिला आरक्षण विधेयक, आजादी की ओर बढ़ते कदम कल उपरोक्त विषय पर नेट से देखकर कुछ लिखा. एक सखी भी आई थी, उसने भी कुछ बातें बतायीं. महिलाओं में यदि शिक्षा, जाग्रति, देशभक्ति तथा जनसेवा की भावनाएं न हों तो राजनीति में उनके प्रवेश करने मात्र से कोई विशेष लाभ नहीं होगा ऐसा उसका मानना है. पिछले दस वर्षों से इस विधेयक को पारित करने के प्रयास हो रहे हैं पर संसद में कुछ पार्टियों की असहमति के कारण ऐसा नहीं हो पाया है. अगले महीने की दस तारीख तक उसे इस विषय पर लेख देना है. आज मृणाल ज्योति की हुसूरी के लिए बात की, दो लोगों ने सहमती दी. एक गमछा तथा पान व ताम्बूल लाकर रखना होगा. जून आज मुम्बई पहुंच गये हैं. नन्हे ने उस दिन हैप्पीनेस वाला लेख भेजा था, उसकी दिशा ठीक है, वह भी वास्तविक प्रसन्नता को ही महत्व देता है न कि ऊपरी ताम-झाम को. दीदी ने उसकी हास्य कविता ‘आधुनिक शिक्षा प्रणाली’ पढ़कर कमेन्ट लिखा है.  

सुबह कैसा तो स्वप्न देखकर उठी. कीचड़ और गोबर से भरी एक गली है जिसमें से वह और नन्हे गुजर रहे हैं, उन्हें गुजरना ही है, तभी बीच सड़क में एक कूड़ेदान में लेटा हुआ एक व्यक्ति उठता है, उसके हाथ में गंदगी टपकाती हुई एक डाली है जिसका छींटा वह उस पर डालता है. वह उसे हाथ से पकड़ कर उठाती है और वह एक कपड़े के पुतले सा हाथ में झूल जाता है. आस-पास के घरों से पूछती है यह किसका है, सब मना करते हैं, एक लडकी इशारे से बताती है, दूसरी गली में इसका घर है, नशा करके इधर-उधर पड़ा रहता है. उसकी नींद खुल जाती है. पांच बज चुके थे. सुबह के स्वप्न कुछ अलग ही होते हैं. उसे लगा अहंकार ही वह कीचड़ है जो नन्हे की सहायता से शुरू किए ब्लॉग के कारण उसे हो सकता है. हिन्युग्म पर अपनी एक कविता उसने हटा दी है, जिसमें व्यर्थ ही अपनी प्रशंसा आप करने जैसी बात है. अभी कुछ देर पहले पिताजी ने तारीफ की, उन्हें कम्प्यूटर पर अपनी मेल खोलना आ गया है. सुबह नैनी को दो बार डांटा, प्राणायाम करते समय वह उसी कमरे में डस्टिंग करने आ गयी, मना करने पर भी नहीं जा रही थी, बाद में शीशे का एक गुलदान तोड़ दिया, उसके भीतर कुछ अवश्य हुआ होगा क्षण भर को, लेकिन गुलदान टूटने का दुःख नहीं था वह, काम ठीक से न करने का तथा किसी को दुःख देने का भी, खैर, जो हुआ सो हुआ..भीतर आसक्ति है, कामना है, यश की लालसा है, क्रोध है, अहंकार है. सारे विकार दिख गये, इतना सब होने पर भी भीतर परमात्मा है, साक्षी है, अनंत सुख है, मस्ती है, परमात्मा कितना दयालु है, वह उनकी कमियों पर ध्यान ही नहीं देता, वे उसे पुकारते हैं तो वह तत्क्षण प्रकट हो जाता है. परमात्मा उनके कितने निकट है !

आज से दिनचर्या में काफी फेरबदल किया है उन्होंने. सुबह चार बजे का अलार्म सुनकर उठी. बड़ी भांजी व भांजे को उनके बचपन में देखा, आखिरी सपना नींद खोलने के लिए होता है इस बात का ऐसा प्रमाण मिला कि मन आश्चर्य से भर गया. नींद खुली और उसी क्षण अलार्म बजा. पांच मिनट चिदाकाश में तारे देखते लेटी रही पर पुनः स्वप्न शुरू हो गये ऐसे ही न जाने कितने जन्मों में वे जाग-जाग कर पुनः सो जाते हैं, फिर उठी, वे प्रातः भ्रमण को गये. आकर प्राणायाम किया, जून भ्रार्मरी के बाद शांत बैठे रहे, पहली बार उन्हें इस तरह चुपचाप बैठे देखा. शायद कोई अनुभव हुआ हो, ज्योति की एक झलक भी मानव को बदल सकती है. परमात्मा हर पल साथ है. वह है तो वे हैं, यह संसार है, वह नहीं तो कुछ नहीं, वह भी वही है और सब कुछ भी वही तो है. नैनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, फिर भी काम कर रही है. उसकी बेटी को पिताजी सम्भाल रहे हैं. उनका दिल भी सोने का है, भावनाओं से भरा है. दुनिया देखी है उन्होंने, जीवन को पूर्ण रूप से जीया है. उनके पास भी भोले बाबा हैं..ईश्वर को प्रेम किये बिना कोई जीवन रस से पूर्ण हो ही कैसे सकता है !


Wednesday, October 19, 2016

बीहू में हूसरी

आज जून अहमदाबाद जा रहे हैं. उसे सफाई के शेष कार्य पूरे करने हैं. आज सुना, काठवाडी़ गाँव में एक अद्भुत दुकान है, बिना दुकानदार की दुकान, ग्राहक अपने आप ही सामान लेते हैं तथा पैसे रखकर चले जाते हैं. सुबह जून से उसकी किसी बात पर बहस हो गयी, बाद में उसने सोचा तो लगा की अति उत्साह में आकर वह भला करने के बजे उल्टा ही काम कर बैठी. उसे अपनी वाणी के दोषों पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है. उसे लगता है जिस प्रकार वह स्वयं को शुद्ध, बुद्ध आत्मा मानती हैं, उसी प्रकार सभी पूर्ण शुद्ध तथा ज्ञानस्वरूप हैं, यह भी अकाट्य सत्य है तो जो भी विकार उसमें दीख रहे हैं, वे ऊपर-ऊपर ही हैं. जैसे गंगा जल की धारा में कभी कोई कचरा बहता चला जाये तो कभी फूल या दीपक..धरा तो शुद्ध ही रहती है. इस तरह तो किसी के दोष देखने ही नहीं चाहिए, आत्मा को ही देखना चाहिए, जैसे वह स्वयं को देखता है ! दूसरी बात कि यदि कोई स्वयं पूर्ण हो तभी उसे दूसरों को कुछ कहने का हक है. वह केवल गुरू ही हो सकता है. उसे अपने अंदर लाखों कमियां दीख पड़ती हैं तो फिर उसे कोई अधिकार ही नहीं है. उसने प्रार्थना की, कि जून अपने हृदय को उसके प्रति स्वच्छ करके सदा की तरह क्षमा कर दें. जैसे आज तक अनगिनत बार बिना कहे ही उसकी सभी गलतियों को माफ़ किया है. उसकी यात्रा शुभ हो.  


यदि कोई कार्य सेवा भाव से किया जाये तो ईश्वरीय सहायता अपने आप मिलने लगती है. जब लेडीज क्लब द्वारा मृणाल ज्योति जाने के लिए गाड़ी नहीं मिल पायी तो एक एक सखी ने भेज दी. बच्चे खुश हुए और वह क्लब की ओर से डोनेशन चेक भी दे पायी. बीहू के दिन घर में ‘हूसरी’ करने की बात भी कह पायी. कल कुछ अन्य लोगों से भी कहेगी. आज भी वर्षा हो रही है. हिन्दयुग्म पर उसकी कविता आई है. वर्षों पहले लिखी यह कविता उसके भीतर के बीज का प्रतीक है, जो अंततः सर्वोच्च मुक्ति के रूप में प्रकट होने को है. एक धार्मिक या कहे अध्यात्मिक व्यक्ति ही परिवर्तन कर सकता है. वह कोई आवरण नहीं चाहता, वह अंतिम सत्य को चाहता है, उससे कम कुछ नहीं. चाहना ही है तो उसे चाहो जो वास्तव में चाहने योग्य हो और मांगना भी हो तो उससे मांगो जो ख़ुशी से दे दे. तन पर लगे पहरों से ज्यादा कठिन है मन पर लगे पहरों को खोलना..और सच्ची क्रांति भी तभी घटती है जब मन के पहरे तोड़ दिए जाएँ और भीतर से एक ऐसी ज्वाला को प्रकट किया जाये जिसे दुनिया का कोई जल बुझा ही नहीं सकता..क्रांति फलित हुई है उसके भीतर ! भीतर जाने के उपाय और साधन बहुत हैं, समय भी है. भगवद् गीता पर लिखना शुरू किया है कल, आज उसे आगे बढ़ाना है ! जून से बात हुई आज वह दूसरी फील्ड में जायेंगे. 

Tuesday, October 18, 2016

जापान में भूकम्प


पिछला पूरा हफ्ता बिलियर्ड मन पर छाया था. शनिवार को कुछ ज्यादा ही. रात को स्वप्न में भी बॉल दिख रही थी. ज्वर इसे ही कहते हैं. असमिया सखी कितनी शांत और सहज नजर आ रही थी, वह खेल में जीत भी गयी. कल जून ने उनके बगीचे के फूलों का वीडियो भी उतारा. कल दीदी से बात हुई, सभी बच्चों के बारे में, माँ के पास बच्चों के सिवाय बात करने का दूसरा क्या विषय हो सकता है. होली में मात्र पांच दिन रह गये है, कविता लिखी है, बस रंगों से सजाना भर है, आज शाम को जून सहायता करेंगे, फिर सभी को भेजेंगे. कल संडे क्लास में बच्चों को काल्पनिक रंगों से होली खिलाई, बच्चे कितने सरल होते हैं, झट मान गये और एक-दूसरे पर रंग छिड़कने लगे. आजकल माँ बाहर बगीचे में जाकर नहीं बैठतीं, पिताजी अकेले बैठे अखबार पढ़ते हैं या कोई पत्रिका.

बड़ी भांजी ने कविता पढ़कर जवाब भेजा है. जापान में जो हुआ उसके बाद प्रकृति पर भरोसा करना ज्यादा मुश्किल है, लेकिन वह तो जड़ है, उसे कोई चला भी नहीं रहा. प्राकृतिक नियमों के आधार पर ही वह काम करती है. शरीर, मन, बुद्धि सभी तो प्रकृति के अंग हैं, लेकिन मन चेतना का आश्रय पाकर मनन् कर सकता है, अर्थात मन पदार्थ से ऊपर उठ सकता है यदि चाहे तो, जब पदार्थ का संयोग चेतन से होता है तो एक तीसरा तत्व पैदा होता है, वही अहंकार है, स्वयं के होने का आभास तभी होता है. यह सत्य है कि उनका होना एक लीला मात्र ही है, क्या हो जायेगा अस्तित्त्व में यदि वे न रहें या रहें ! इसका अर्थ हुआ कि वे सदा से थे या सदा नहीं थे !

कल पिताजी का जवाब आया, उन्होंने तीन कविताओं का जिक्र किया है. दो स्मरण में आ रही हैं, तीसरी याद नहीं. कविताएँ भी उससे लिखी जाने के बाद जैसे कुछ और हो जाती हैं, उनसे कोई संबंध नहीं रहता..क्योंकि वह जो वास्तव में है, अलिप्त है, निर्विकार है, कोई वस्तु उसे छू नहीं सकती. कल शाम को मृणाल ज्योति गयी. कई बातों की जानकारी हुई. कम्पनी में हड़ताल हो गयी है, जून वापस आ गये हैं, आज वह गुझिया बनाने वाली है, अब तो वह भी सहायता करेंगे.


वर्षा के कारण मौसम एक बार फिर ठंडा हो गया है. फागुन का महीना जैसे सावन में बदल गया है. वैसे भी मन बार-बार जापान के लोगों की तरफ जाता है. जिनके लिए इतनी बड़ी विपदा सम्मुख आ खड़ी हुई है. लेकिन जापानवासियों को भूकम्प झेलने की आदत हो गयी है, आपदा प्रबन्धन में वे बहुत आगे हैं. परमाणु रिएक्टरों से जो रिसाव हो रहा है उसे रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं. अभी वे सुरक्षित हैं, लेकिन कब तक रहेंगे, कौन कह सकता है ! अभी कुछ देर पूर्व पिताजी की उम्र की बात चल रही थी. अस्सी के होकर भी वह बिलकुल सीधे चलते हैं, मन में जोश भरा है और जवानों की सी फुर्ती है. कल क्लब में होली उत्सव मनाया जायेगा. 

जला हुआ दूध


फिर एक अन्तराल ! सुबह चार बजे ही अलार्म सुनकर नींद खुल गयी, न बजे तो पता नहीं कितनी देर से खुले. दिन ऐसे बेहोशी में बीत रहे हैं. आज दूध देर से आया था, दोपहर को गैस पर रख कर भूल गयी. जून को लंच के बाद बाहर तक छोड़कर आई तो दूध चूल्हे से उतारने के बजाय कम्प्यूटर के सामने बैठ गयी और पतीला बुरी तरह से जल गया. देखें कितना साफ होता है, नैनी को कहा है कि रगड़-रगड़ कर साफ करे. सारे घर में जले हुए दूध की गंध फ़ैल गयी है. ब्लॉग पर ‘गंगा’ कविता डाली, तस्वीर नहीं आ पाई, स्पीड बहुत कम थी. जून ने दोपहर को पपीते के परांठे की तारीफ़ क्या कर दी, सब भूल गयी. दुःख में मानव सजग रहता है, सुख उसे बेहोश कर देता है, पर उन्हें तो दोनों का साक्षी होकर रहना है. सजग होकर रहना ही आत्मा में रहना है. विचार सदा भूत या भविष्य के होते हैं, वर्तमान में कोई विचार नहीं होता, वर्तमान का पल इतना सूक्ष्म होता है कि बस वह होता है. पिछले दिनों जो पुस्तक पढ़ती रही उसने भी मन पर जैसे पर्दा डाल दिया था. खैर, ठोकर लगकर ही इन्सान सुधरता है. भीतर जो साक्षी है, वह तो अब भी वैसा ही है, निर्विकार और स्थितप्रज्ञ, यह जो उथल-पुथल मची है, यह अहंकार को ही सता रही है.

कल से एक नई किताब पढ़नी शुरू की है, जो कोलकाता यात्रा के दौरान खरीदी थी पर अभी तक पढ़ी नहीं थी. इसके अनुसार सबसे अच्छा ध्यान है कुछ भी न किया जाये, साक्षी भाव में रहा जाये. जब जरूरत हो तभी मन से काम लेना है, अन्यथा उसे शांत रहने दें. अपने आप आकाश में बादलों की तरह कोई विचार आये तो उसे गुजर जाने दें, बिना कोई टिप्पणी किये क्योंकि टिप्पणी करके भी क्या होगा, व्यर्थ ऊर्जा नष्ट होगी. जीवन में भी इसी सिद्धांत को अपनाना होगा तथा ध्यान में भी. हर समय इसी को पक्का करना होगा तब न अहंकार रहेगा न दुःख ! साक्षी भाव इतना सूक्ष्म है कि मन, बुद्धि की पकड़ में नहीं आता, जब कुछ न करें तो बस वही होता है लेकिन जैसे ही भीतर कोई स्फुरणा हुई वह लोप हो जाता है, बड़ा शर्मीला है ! अंतर के आकाश में जब वर्तमान का सूरज खिलता है तो अतीत के बादल छंट जाते हैं.

आज विश्व महिला दिवस है, उसे अपने भीतर अनंत शक्ति का उदय होता दिखाई दे रहा है. कल शाम को क्लब में पहली बार बिलियर्ड खेला. q तथा v का भेद जाना, अच्छा लगा. कोच अच्छी तरह सिखा रहे हैं. कुछ न कुछ नया सीखते रहना चाहिए. होली का उत्सव आने वाला है. होली का उद्देश्य है सारे मतभेद भुलाकर मस्त हो जाना, अद्वैत का संदेश देती है होली..एकता का, प्रेम का, मिठास का, मधुरता का..जब आम पर बौर छा जाते हैं और पलाश के फूलों से वृक्ष सज जाते हैं. भंवरे और तितलियाँ गुंजन करती हैं, जब हवा में मदमस्त करने वाली सुगंध भर जाती है. जब महुआ फूलों से लद जाता है. गाँव-देहात में फागुनी बयार की मस्ती में लोग फागुन गाते हैं और जब बच्चों की परीक्षाएं होने वाली होती हैं, तब होली आती है. रंगों की बातें करे तो हर रंग सुंदर है. सतरंगी यह जगत और सुंदर बन जाता है, तो होली पर कविता लिखी जा सकती है..


Sunday, October 16, 2016

बाबा रामदेव का आगमन



आज कई दिनों बाद लिख रही है. पिछले पांच दिन फिर डायरी नहीं खोली, आज पिताजी वापस चले गये. उनके बारे में कितनी बातें उन्हें ज्ञात हुईं. देश के विभाजन के समय उनकी उम्र मात्र पन्द्रह-सोलह साल की थी, हाई स्कूल में ही थे. पाकिस्तान से आकर वे लोग फाजिल्का में रहे. गुजारे के लिए पहले मूंगफली बेचीं, एक डाक्टर के पास कम्पाउडर का काम किया, फिर उन्हें तहसील में एक नौकरी मिली. उसके बाद ही डाकविभाग में काम मिला, साथ-साथ पढ़ाई भी करते रहे. कई बार प्रमोशन हुआ और उच्च पद से रिटायर हुए. उनका स्वभाव शांत है, सीखने की ललक अभी तक है. आत्मा की खोज है, आत्मनिर्भर हैं, मोह से परे हैं, संगीत का शौक है और भी न जाने कितने गुण हैं, उनके लिए वह एक कविता लिखेगी !  मौसम अच्छा है, धूप खिली है. कल बाबा रामदेव आये थे डीपीएस स्कूल के मैदान में उनका कार्यक्रम हुआ. वे गये थे. जोश से भरा उनका भाषण हजारों लोगों ने सुना. इस समय पिताजी बाहर बैठे हैं, माँ कमरे में हैं, दोनों चुपचाप हैं. वृद्धावस्था में कैसी शांति छा जाती है, सारी दौड़-धूप समाप्त हो जाती है, जीवन ठहर जाता है. उसका जीवन भी अपेक्षाकृत शांत हो गया है. ध्यान के बाद की शांति तो अनुपम है ही !

आत्मभाव में स्थित रहना, जितना सहज साधना करते समय होता है, उतना ही सहज मनोभाव में रहना, साधना न करने पर होता है. मन में उठती किसी वृत्ति के साथ जब वे एकाकार हो जाते हैं, साक्षी भाव में नहीं रह पाते. इसी को संसार कहते हैं. व्यर्थ ही ऊर्जा का व्यय होता है और आत्मा के पद से गिरकर वे नीचे फेंक दिए जाते हैं. असजग होकर जीने का, अहंकार में जीने का और द्वेष भाव में जीने का यही परिणाम होता है, आसक्ति का यही परिणाम है ! साधना आजीवन चलती रहने वाली प्रक्रिया है. कितने ही अनुभव हो जाएँ, निश्चिन्त नहीं हुआ जा सकता, मन के स्तर पर आना ही होता है. पुराने संस्कारों को यदि आलम्बन मिल जाये तो वे पुनः अपना सर उठा लेते हैं. भीतर अभिमान भी सूक्ष्म रूप से विद्यमान है ही. देहाभिमान भी है क्योंकि देह यदि सुंदर है तो मन भी प्रसन्न होता है और मन शांत हो तो देह पर उसकी झलक भी दिखाई पड़ जाती है. पिछले दिनों मन में जो उहापोह चल रही थी, उसका असर शरीर पर स्पष्ट दीख रहा है. सद्गुरू से इस बारे में कुछ पूछने जायें तो कहेंगे, जितना हो सके सहज रहो. वही तो नहीं होता, एकांत में जो सहजता स्वाभाविक रहती है, वही लोगों के सामने कुछ खो जाती है. जो भी है जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार लेने से सहजता को बचाया जा सकता है ! साक्षी भाव में रहकर अनुकूल व परिस्थितियों को देखते रहना ही उनके वश में है.

आज भी मौसम खुशगवार है, धूप खिली है. कल वे नन्हे के एक मित्र के भाई की शादी के रिसेप्शन में गये. नन्हे का फोन आया था, वह मोटरबाइक से कोजीकोट जाना चाहता है. उसे रोमांच पसंद है. शिवरात्रि आने वाली है. उसने पढ़ा, इस ब्रह्मांड का आकार एक उलटे अंड जैसा है, जिसका तला खुला है. लेकिन वह अनंत है. ब्रहमा व विष्णु भी जिसका पार नहीं पा सके. समपर्ण ही एक मात्र उपाय है जिससे कोई उनको जान सकता है, क्योंकि कुछ नहीं होते ही कोई सब कुछ हो जाता है ! खालीपन तो आकाश के खालीपन सा ही है और खालीपन मायापति है, सबकुछ शून्य से आया है और शून्य में ही समा जायेगा !


Saturday, October 15, 2016

गुलाब वाटिका


पौने तीन बजने को हैं थोड़ी देर में कार आ जाएगी और वह मार्केट जाएगी फिर वहीँ से उन वृद्धा आंटी से मिलने जाएगी, जिनके भाई का देहांत परसों ब्लड कैंसर से हो गया, अन्य कई रोग भी उन्हें सता रहे थे. बुढ़ापा अपने-आप में एक रोग है. उसके खुद के दांत में भी पिछले कुछ दिनों से थोड़ा दर्द है, यथा सम्भव मुंह व दांत साफ रखने की चेष्टा करती है, शेष जो हो सो हो. कल ब्लॉग पर एक हास्य कविता पोस्ट की, नन्हे को पसंद आई. कल नन्हे ने एसी से आने वाली गंध का कारगर इलाज बताया, बच्चों का दिमाग यकीनन तेज चलता है. उसका दिमाग तो अब एक ही ट्रैक पर चलता है. ध्यान का अनुभव जिसे एक बार हो जाये उसे ऐसा ही होता होगा. अब इस जगत की किसी भी वस्तु में कोई रूचि नहीं रह गयी है, सब खेल लगता है. उनके भीतर एक और जगत है, फूल उतने ही सुंदर हैं भीतर और आकाश उतना ही विशाल..लेकिन सद्गुरू की बात मानकर साधना, सत्संग, सेवा व स्वाध्याय फिर भी जारी रखने होंगे. साधना करने में अब केवल ध्यान में ही रूचि रह गयी है, ज्ञान सुनने की जगह भीतर का सन्नाटा सुनना भाता है. कल से पिताजी आ रहे हैं तो वैसे भी उनकी दिनचर्या बदल जाएगी. आज सुबह नृत्य उतर आया था और कुछ शब्द भी..कुछ पंक्तियाँ बाद में लिखीं पर जो शब्द स्वत: फूट रहे थे वे बाद में याद नहीं रहते. सुबह गुलाब वाटिका में टहलने गयी, माली, सफाई कर्मचारी सभी अपने-अपने काम में लगे थे. एक बूढ़ी महिला घास काट रही थी, उससे बात की तो कितनी खुश हो गयी. उस बगीचे के माली फूलों के बीज सुखा रहे थे, उसने भी गेंदे के फूल सुखाने को रखे हैं. जीवन उनके चारों और बिखरा है, कण-कण में वही तो है, वह परमात्मा उसका अपना है !

आज बड़े भाई-भाभी के विवाह की सालगिरह है, तीन दशक हो गये उनके विवाह को, भाई दो वर्ष बाद रिटायर हो जायेंगे. उनसे बात की, आज छुट्टी है, भाई की तबियत ठीक नहीं है, सोये थे. उसने उन्हें कार्ड में कविता भेजी थी, लेकिन मन भी तो प्रफ्फुलित होना चाहिए तभी कविता भाती है. जीवन का आनन्द क्या है इसका पता ही नहीं चल पाता कि जिन्दगी हाथ से फिसल जाती है. कल छोटी बहन को भी एक कविता भेजी. मौसम बदल रहा है, अब वे आंवले-लौकी-एलोवेरा का जूस पीना शुरू कर सकते हैं. कल सुबह उसने मन को खुली छूट दे दी थी, सुबह टहलने गयी दोपहर बाद बाजार..भगवान कृष्ण  कहते हैं जो सब जगह उन्हें ही देखता है वही देखता है, यदि ब्रह्म उनका मूल है तो एक अर्थ में वे भी वही हैं. मूल से ही फूल होता है, दोनों को एक साथ ही देखना होगा, समग्रता में. डाल से टूटा फूल कब तक रहेगा. आज पिताजी आ रहे हैं, अगले कुछ दिनों तक वे व्यस्त रहेंगे, जीवन का एक नया रंग प्रसुत होगा. आज बगीचे में कुछ काम करवाया. उसकी ऊर्जा इन्हीं छोटे-मोटे कामों में ही लग रही है, कुछ बड़ा काम उसके हाथों से होने वाला नहीं है, लेकिन सद्गुरु कहते हैं जो भी काम हो यदि उसे निष्काम भाव से किया जाये तो वह भी मुक्त करता है. सुबह से रात्रि तक मन समता में रह पाता है या नहीं इस बात पर निर्भर करता है उनका विकास, लेकिन मन यदि इस कामना से पीड़ित हो कि उसे कुछ महान कार्य करना है तो वह कामना ही बंधन का कारण बनेगी. कर्म कर्ता भाव से मुक्त होने के लिए ही है न कि कर्म करके कुछ बन जाने के लिए. उनके भीतर एक तृप्ति का अहसास हो, संतुष्टि हो और आनंद हो, वही प्राप्य है !

पिछले तीन दिन कुछ नहीं लिखा, उस दिन दोपहर ढाई बजे पिताजी आ गये थे, आज उन्हें आये पांचवा दिन है. उन्हें यहाँ रहना अच्छा लग रहा है पर और पांच दिन रह कर वापस जायेंगे ही. आज एक सखी के विवाह की वर्षगांठ है, वे सभी पार्टी में जाएँगे.  



Friday, October 14, 2016

बगीचे में झूला


आज बसंत पंचमी है. सुबह मृणाल ज्योति में पूजा में सम्मिलित हुई और दोपहर बाद एक सखी के यहाँ हवन में, पहले सत्य नारायण की कथा भी थी. बच्चों की कहानी सी लगती है. भगवान भी बात-बात पर रूठ जाते हैं, फिर प्रसन्न हो जाते हैं, भोले-भाले लोगों के भगवान भी तो वैसे ही होंगे, लेकिन पूजा करने से बाहरी वातावरण सात्विक बन जाता है. मन के भीतर भी तरंगें पहुंचती हैं और वातावरण सात्विक होने में मदद मिलती है. हर कोई अपनी-अपनी समझ से काम करता है, जो जैसा करता है वैसा ही भरता है. यदि कोई घबरा कर कोई शब्द बोल रहा है तो वह घबराहट का संस्कार ही बना रहा है और यदि कोई दूसरों के व्यवहार पर कोई निर्णय दे रहा है तो वह भी एक संस्कार बना रहा है. आज सुबह उसे बिजली के उदाहरण से आत्मा, मन व बुद्धि का भेद स्पष्ट हुआ. आत्मा जिसके साथ जुड़ जाती है उसी का रूप धर लेती है. जैसे विद्युत हीटर के साथ जुड़कर गर्मी का, एसी में ठंड का, टीवी में आवाज व चित्र का तथा विभिन्न उपकरणों में विभिन्न रूप, वैसे ही उनके भीतर की ऊर्जा भिन्न-भिन्न भावों, विचारों तथा धारणाओं के रूप में व्यक्त होती है. जब यह परमात्मा के साथ जुड़ जाती है तब उसी के रूप में स्वयं को जानती है. शेष सब बाहर की यात्रा में काम आते हैं और अंतिम भीतर की यात्रा में !

आज ध्यान में सुंदर अनुभव हुआ. जब, वे जब चाहें तब अपने-आप में स्थित हो पाते हैं तभी मानना चाहिए कि साधना में गति हो रही है. मन में यदा-कदा इधर-उधर के व्यर्थ संकल्प उठते हैं पर वे सागर में उठी लहर, बूंद या बुदबुदों से ज्यादा कुछ नहीं. सागर का उससे क्या बिगड़ता है, उसी की सत्ता से वे उपजे हैं और उसी में लीन हो जाने वाले हैं. इस ज्ञान में स्थिति बनी रहे तो मन व बुद्धि से मैल की परत छूटने लगती है, झूठ बोलने का जो संस्कार है, जड़ता का जो संस्कार है, अहंकार का जो संस्कार है और ईर्ष्या का जो सबसे गहरा संस्कार है, इन सबसे मुक्त होना है. इन्हें मानकर यदि स्वयं की सत्ता दी तो मुक्त होना असम्भव है. सद्गुरु कहते हैं कि माने सत्य ही उसका संस्कार है. उत्साह व जोश ही उसके भीतर कूट-कूटकर भरे हैं. इर्ष्या तो उसे छू भी नहीं गयी, क्योंकि उसे ज्ञात हो गया है कि नदी-नाव संजोग की तरह लोग आपस में मिलते हैं, मोह के कारण संबंध बना लेते हैं, फिर बिछड़ जाते हैं. उनके साथ मृत्यु के बाद कोई जाने वाला नहीं है, केवल परमात्मा ही उनके साथ रहेगा और रहेंगे उनके कर्म. आज वर्षा के कारण पुनः ठंड हो गयी है. जून को देहली जाना है. चार दिन बाद पिताजी को साथ लेकर आयेंगे. एक सखी ने बगीचे में लगाने के लिए झूला माँगा है, प्रतियोगिता में भाग ले रही है. उनके बगीचे में फूल अब कम हो गये हैं. माँ उठकर बाहर जा रही हैं, फिर लौट आई हैं, शायद देखने गयीं थी, पिताजी बैठे हैं या नहीं.

बादल आज भी बने हैं, ठंड बढ़ गयी है. शाम को जो कविता लिखी थी, ज्यादा लोगों ने नहीं पढ़ी, आत्मा को चाहने वाले ज्यादा नहीं हैं. सुबह एक स्वप्न देखकर नींद खुली. एक सखी का भाई घर से भागकर यहाँ आया है. रातभर उनके बरामदे में लिनन बॉक्स में बैठा रहा. सुबह जैसे ही वह दरवाजा खोलकर बाहर आयी तो उसने बताया. स्वप्न कितना सत्य प्रतीत हो रहा था. रात भी मन ने एक स्वप्न बुना और तभी समझ में आ गया यह स्वप्न है. इसी तरह उनका जीवन भी एक स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है, उनका अतीत तो स्वप्न बन ही चुका है, भविष्य एक स्वप्न है ही पर वर्तमान का यह दौर भी स्वप्न ही है. अब कोई पढ़े या नहीं क्या फर्क पड़ता है क्योंकि सोये हुए लोगों की बात का क्या आदर और क्या अनादर, सत्य इस सबके पीछे छिपा है. झलकें मिलने लगी हैं पर पूरा सूर्य अभी नजर नहीं आया है, यह कामना भी छोडनी होगी, साधो सहज समाधि भली !       




Wednesday, October 12, 2016

लाल चौक पर तिरंगा

Image result for लाल चौक पर तिरंगा

कल गणतन्त्र दिवस है. बीजेपी काश्मीर में लाल चौक पर तिरंगा फहराना चाहती है. उत्तरपूर्व के कई उग्रवादी संगठनों ने इसे न मनाने का फैसला किया है. उनकी अपनी समझ है. अलगाववादी गुट हजारों वर्षों के इतिहास को झुठला कैसे सकते हैं, वे ही जानें. जून ने सुबह उसका नाम डेंटिस्ट के पास लिखवा दिया था और गाड़ी भी भेज दी थी. वह बहुत ध्यान रखते हैं उसका. कल वे पहले नेहरु मैदान में फिर टीवी पर परेड देखेंगे, घर पर भी तिरंगा फहराएंगे. सुबह रामदेवजी का जोशीला भाषण सुना. देश जाग रहा है, परिवर्तन की लहर सब ओर दिखाई दे रही है, देश के लिए एक भावना लोगों के मनों में घर कर रही है. 

लॉन में हरी घास पर धरा का कोमल स्पर्श पाकर ( मकर आसन में ) लिखना एक नितांत सुंदर अनुभव है, जब कुनकुनी धूप बरस रही हो. स्वर्गिक, अलौकिक अनुभव कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. फूलों की कतारें हैं, हरियाली है और है सन्नाटा जिसे चीरता है पंछियों का कलरव! आज सुबह भी सुंदर वचन सुने, ब्रह्म मुहूर्त में आत्मा के विषय में सुनना भी प्रभु की अनंत कृपा का फल है. उन्हें कल एक फिल्म देखने जाना है, नन्हे के एक मित्र की कंपनी ने मॉल तथा उसमें स्थित पिक्चर हॉल का रिव्यू करने का काम उन्हें सौंपा है, टिकट के पैसे वे देंगे. कल उसने स्वर्गीय फुफेरे भाई की भेजी कविता ब्लॉग पर डाली. कल वह बहुत याद आ रहा था. बचपन में वह बहुत गोरा था, पारदर्शी त्वचा और नाजुक भी बहुत था. खांसता रहता था, सब उसे बुड्ढा कहते था. बड़ा हुआ तो किशोरावस्था भी देर से आयी, इलाज करने के बाद, लम्बा बहुत हो गया और दुबला भी..उसने मन ही मन प्रार्थना की जहाँ भी वह होगा उसे शुभकामनायें पहुंच ही जाएँगी.

आज सुबह ध्यान में सागर और लहर का संबंध स्पष्ट हुआ. वे एक अनायास उठी हुई लहर से ज्यादा कुछ भी नहीं, इस अनंत ब्रहमांड के सामने एक धूल के कण से भी छोटे हैं, पर जब वे उस सागर के साथ अपनी एकता का अनुभव कर लेते हैं, तब अहंकार उन्हें दुःख नहीं देता, जैसे बंधन उनका ही बनाया हुआ है, मुक्ति भी उन्हें ही खोजनी है. जानने के बाद ही पता चलता है कि वे कुछ भी नहीं जानते. मिलने के बाद ही पता चलता है कि अभी कितने दूर हैं. वर्तमान में रहें तो कोई बात ही नहीं करने के लिए, ज्ञान में रहें तो कुछ कहने के लिए बचता ही नहीं, ध्यान में रहें तो जगत के लिए कहने लायक क्या शेष रह जाता है. सेवा के सिवा करने को भी क्या है ! 

फरवरी का पहला दिन ! इसी महीने पिताजी यहाँ आ रहे हैं, जून देहली जा रहे हैं, उन्हीं के साथ आयेंगे. आज ब्लॉग पर हास्य कविताएँ पोस्ट कीं. कुछ लोगों की कविताएँ उसे समझ नहीं आतीं, जटिल मन की जटिल कविताएँ ! ध्यान में मन सरल हो जाता है, सहज जैसे प्रकृति के शांत रूप, लेकिन प्रकृति कभी विकराल रूप भी धर लेती है. आज एक सखी की बिटिया का जन्मदिन है, उसने कविता लिखी, बड़ी भांजी, छोटा भांजा, भाभी-भैया व एक सखी के लिए भी, इसी महीने सभी का खास दिन है. जून आफिस से प्रिंट करके लायेंगे. उसके सिर में हल्का सा भारीपन है, दोपहर से लिखने में लगी है, शायद इसीलिए..अभी फूलों का गुलदस्ता बनाना है, जून भी आने वाले होंगे. 




अ टाउन कॉल्ड मालगुडी

Image result for a town called malgudi rk narayan
तीन दिन देखते-देखते बीत गये, उत्सव के दिन. लिखने का समय ही नहीं मिला. आज सुबह से बदली छायी है. कल रात भर वर्षा होती रही, ठंड बढ़ गयी है. उसने दो स्वेटर पहने हैं. फिर भी ध्यान में कंपकंपी होने लगी थी. सुबह-सुबह बाबा रामदेव मात्र धोती पहने योग सिखाते हैं. जून शिवसागर गये हैं, शाम तक आ जायेंगे. सुबह पिताजी ने कहा, रात को तीन बजे उठने पर उन्हें ठंड लगी, उसे ऊनी टोपी बनाने को कहा है. उसने कहा, उठते ही कुछ पहन लेना चाहिए, आल्मारी में उनके लिए मफलर व ऊनी मोज़े भी रखे हैं, पर वे पहनना नहीं चाहते. उन्हें इस बात से ही ख़ुशी होगी कि उसने उनके लिए टोपी बनाई, पहनें या नहीं, इससे ज्यादा अंतर नहीं पड़ता. जून ने कहा, वे चाहते हैं कोई उन्हें याद दिलाये. इंसान अपनी भी जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहता. उधर छोटी ननद उनके बिना अकेलापन महसूस कर रही है, वे लोग चाहते हैं घर के पास तबादला हो जाये. मानव को कितने प्रकार के भय सताते हैं. आज वर्षों पहले मंझले भाई द्वारा डायरी में लिखी कविता से प्रेरित होकर लिखी कविता ब्लॉग पर डाली. सुबह दृश्य और द्रष्टा के भेद का वर्णन सुना. सुख में छिपे दुःख को पहचानकर उससे मुक्ति पाने का उपाय समाधि है.

आज धूप निकली है अपने घर से, बल्कि कहें कि बादलों ने उसका रास्ता नहीं रोका है न कुहरे न न कुहासे ने. चारों तरफ कैसी रौनक हो गयी है, रंग निखर आते हैं धूप में, पिछले दो दिन सारा दृश्य एक ही रंग का प्रतीत होता था. जून के ऑफिस में एक विदेशी भूवैज्ञानिक आये हैं क्रिस्टोफर कॉनकार्ड, कल शाम वह एक मित्र परिवार के यहाँ उनसे मिली. वे लन्दन के एक गाँव में रहते हैं. पैंतीस वर्ष के थे तो अपनी पत्नी के साथ मिलकर तेल के क्षेत्र में अपनी कंसल्टेंसी की कम्पनी शुरू की, पत्नी प्रबंध करती है और वह पूरे विश्व में घूम-घूमकर अपना ज्ञान बांटते हैं. दो बच्चे हैं, बेटा और बेटी, बेटी के तीन बच्चे हैं, लिखती है, बेटा सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता है. दोनों के बचपन की बातें बड़े चाव से बता रहे थे, बातें करने में कुशल हैं. उनके पूर्वज भारत में रहे, काम किया. पत्नी के दादा भी यहाँ रहे थे, हिंदी से परिचित हैं क्योंकि बचपन में सुनी थी. असम कई बार आ चुके हैं, आसपास के तेल क्षेत्र से परिचित हैं. बासठ वर्ष के हैं, इस उम्र में भी बच्चों का सा जोश है. बच्चों से प्यार भी है. जहाँ भी जाते हैं, वहाँ के स्कूलों में जाकर बच्चों से मिलते हैं और दान भी करते हैं. कुल मिलाकर सीधे, सरल व एक सहृदय कोमल दिल वाले इन्सान हैं. सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी बहुत है. उनके बारे में एक छोटी सी कविता वह लिखेगी. आज वे उनके साथ मृणाल ज्योति जा रहे हैं.

कल उसने एक छोटी सी कविता लिखी, श्री क्रिस्टोफर के लिए, मृणाल ज्योति का ट्रिप अच्छा रहा. शाम को उन्होंने कविता का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया. आज धूप बहुत तेज है, माँ-पिताजी बाहर धूप में ही बैठे हैं. सुबह सुना मानव को अपने बल का उपयोग संसार की सेवा के लिए करना है न कि अपने सुख के लिए !

आज नेताजी पर एक कविता लिखी. मौसम अब कम ठंडा है, बदली के बावजूद. कल पुनः आग जलायी और आग के चारों ओर बैठकर सर्दियों में मिलने वाली वस्तुएं गजक आदि खायीं, विदेशी मेहमान को बुलाया था. जो भारतीय भोजन आराम से खा लेते हैं. रात को और सुबह भी तमस भर गया था, ध्यान किया तो सत् पुनः प्रबल हो गया. साक्षी होकर इन तीन गुणों का खेल देखते ही बनता है. इस वक्त मन शांत है अर्थात सत् की प्रमुखता है. जून कल लाइब्रेरी से लायी पुस्तक पढ़ रहे हैं आर के नारायण की ‘अ टाउन कॉल्ड मालगुडी’ उसकी पढ़ाई आजकल नहीं हो पाती है. सुबह पाठ करने व नेट पर कवितायें पढ़ने के अलावा कुछ नहीं पढ़ पाती है.      


Sunday, October 9, 2016

जाप साहिब का पाठ


सूर्य की किरणें इस डायरी को छू रही हैं और उसके भीतर भी भर रही हैं ऊष्मा, ताप और सृजन करने की क्षमता ! इस क्षण और आज सुबह से हर क्षण अपनी अनंत क्षमता का अहसास उसे अनुप्राणित किये हुए है, उनके भीतर अपार सम्भावनाएं हैं. उनमें से हरेक ब्रह्म का अधिकारी है, तृप्त है, आनन्द से भरा है और अपने भीतर का प्रेम व शांति इस जगत के लिए बाँट सकता है. दोनों हाथों से उलीचे तो भी खत्म न हो इतना वह अपने भीतर भरे है ! आज वर्षों पूर्व लिखी एक कविता हिन्दयुग्म में भेजी. सुबह उठी तो एक स्वप्न चल रहा था, जागते ही तिरोहित हो गया. ऐसे ही तो जीवन में आने वाली हर परिस्थिति एक स्वप्न ही है, जागकर देखें तो एक खेल ही लगता है सब कुछ. परसों मृणाल ज्योति में बीहू का उत्सव है, जून और उसे बुलाया है. सूर्य धीरे-धीरे अस्ताचल को जा रहा है, शाम के सत्संग की तयारी उसने कर ली है. एक फोन की उसे प्रतीक्षा थी, नहीं आया, एक बच्ची का फोन, हिंदी का कक्षा कार्य करने में उसे सहायता चाहिए थी. परसों एक संबंधी का जन्मदिन है, फेसबुक ने याद दिलाया, उसने एक कविता लिखी. आज उसने गुरु माँ द्वारा ‘गुरू गोविन्द सिंह जी’ के प्रकाशपर्व पर जाप साहिब का पहला भाग सुना. उन्होंने कहा ‘मानव मन यदि समाधि का अनुभव कर ले तो भी उसके भीतर अदृश्य इच्छाएं रहती हैं, जो समाज के हित में लगने के लिए प्रेरित करती हैं. सारी कामनाओं का त्याग कर ऋषि जंगल में जाता है पर पूर्ण सत्य का साक्षात्कार कर पुनः समाज में लौटता है. समाज को कुछ देने के लिए, ऊर्जा तो उसके भीतर पहले की तरह ही है बल्कि कहीं ज्यादा’. उससे भी परमात्मा कुछ कराए इसके लिए वह तैयार है. उसकी शक्ति व्यर्थ न जाये, उसकी श्वासें इस जगत के लिए हों. उसने सद्गुरु से प्रार्थना की, जो सदा ही उसकी प्रार्थना का उत्तर देते आये थे, उसके पास जो कुछ भी, उस पर सबका अधिकार हो..प्रकृति जिस तरह लुटाती है, संत जिस तरह लुटाता है, उसके अंतर का प्रेम भी सहज ही प्रवाहित होता रहे !    

आज सुबह समाधि के लिए मन को पंच क्लेशों से मुक्त करने की बात सुनी. अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष व अभिनिवेष ये पांच क्लेश उनके मन को पंचवृत्तियों में भटकाते रहते हैं. पंच वृत्तियाँ (अनुमान, आगम, प्रत्यक्ष), स्वप्न, निद्रा, निरुद्द्ध और एकाग्र ! इस क्षण उसका मन समाहित है, फोन आ गया सो ध्यान से उठना पड़ा. कल लोहड़ी है. तैयारियां हो रही हैं. उत्सव उनके एकरस जीवन में नया रंग भरते हैं. शाम को वे आग जलाएंगे और स्वयं तथा मेहमानों के लिए खिचड़ी, आलू, खट्टी-मीठी चटनी बनायेंगे. जून ढेर सारा सामान जो अहमदाबाद से लाये थे, वह भी रहेगा तथा गाजर का हलवा. वही लेकर वह मृणाल ज्योति भी जाएगी. दीदी, तथा छोटी बहन भी अपने-अपने घरों में यह उत्सव मना रहे हैं. मकर संक्रांति पर लिखी कविता भी उसने सभी को भेजी.

आज कितने सुंदर शब्द सुने –
केसर, कस्तूरी, पुष्प और स्वर्ण सभी को भाते हैं, वैसे ही संतों की ज्योति भी सभी को भाती है.
घी और रेशमी वस्त्र सभी को भाते हैं, भक्त भी सभी को प्रिय होते हैं.
मन प्याला है और परमात्मा के नाम का रस उसमें भरा है.
मृत देह की चषक बनी ज्यों मृत मन का बनता प्याला !

तन में रंग लगा माया का, प्रेम का रंग चढ़े फिर क्योंकर ?
चेतनता आरूढ़ जीव पर, जीव चढ़ा अहंकार पर.
अहंकार है बुद्धि ऊपर, बुद्धि मन पर रही विराजे.
मन चलता है प्राण रथों पर, प्राण इंद्रियरूपी रथ पर.
इन्द्रियां देह पर करें सवारी, देह भूतों से बनी हुई है.

कभी गगन में चमके दिनकर, कभी घोर अँधेरा छाता.
कभी धुआं, कोहरा धुंधलका, कभी चमकती बिजली पल-पल.
रिमझिम बादल बरसा करते, कभी बर्फ के पत्थर पड़ते.
तरह-तरह के शब्द गरजते किन्तु नभ ज्यों का त्यों रहता.
बाढ़ की विभिषका आये, भूचाल भूमि थर्राए.
कितनी उथल-पुथल हो जाये पर वह निर्विकार सदा सम.

ऐसे ही उस परम सत्ता में कुछ भी अंतर आ नहीं सकता.


Friday, October 7, 2016

क्लब में नृत्य

Image result for dance in club
आज सुबह जून का फोन आया दो बार, दोनों बार अन्य फोन आ गये सो बात पूरी नहीं हो सकी, वैसे भी बात पूरी हो ही कहाँ पाती है, जीवन की संध्या आ जाती है. मृत्यु शैया पर पड़ा व्यक्ति भी यही सोचता है कि कितनी बातें अनकही रह गयीं. उसे तो आज ही, इसी क्षण ही सबसे हिसाब-किताब खत्म कर लेना है, कोई लेन-देन शेष नहीं रखना, परमात्मा, आत्मा, सद्गुरू, चारों दिशाओं और सभी देवी-देवताओं, पूर्व के स्द्गुरूओं, भावी बुद्धों सभी को साक्षी बनाकर इस क्षण वह घोषणा करती है कि आज के बाद से उसकी किसी से कोई अपेक्षा नहीं है और वह अपने हृदय की समस्त मंगल कामनाएं उन्हें देकर स्वयं को भी मुक्त करती है. क्योंकि वह जो वास्तव में है वह निर्विकार तत्व है, वह न कुछ ग्रहण कर सकता है न कुछ दे सकता है, प्रारब्ध वश जो भी आगे जीवन चलेगा, उससे उसका क्या संबंध है ? मन, बुद्धि, संस्कार के द्वारा जीवन में जो घटेगा, वह सभी के हित में हो यही प्रार्थना है, यह लिखना भी तो इन्हीं के द्वारा हो रहा है, सात्विक बुद्धि के द्वारा ही यह सम्भव है. आज सभी परिजनों वे सखियों के फोन आये. दीदी का फोन नहीं आया, शायद अभी उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ होगा, उसने बात की तो ऐसा ही था. सुबह सद्गुरू को देशी-विदेशी मेहमानों के सामने सहजता से सवालों के जवाब देते सुना. कह रहे थे भीतर कितनी शक्तियाँ छिपी ह्युई हैं, साधना के बल पर कोई उन्हें जागृत कर सकता है, योग के हजारों चमत्कार हैं. कम से कम अपने तन-मन को पूर्णतया स्वस्थ व प्रसन्न रख सके, इतना तो हरेक का कर्त्तव्य है !  

कुछ देर पहले एक सखी के घर गयी, उसकी बहन आई हुई है, जो कई वर्ष पूर्व भी आई थी जब छात्रा थी. उसके पुत्र ने लैपटॉप में डाली कुछ तस्वीरें दिखायीं, दोनों बहनों की बच्चियां सगी बहनें लग रही थीं. जून कुछ ही देर में आने वाले हैं. कल क्लब में मैराथन का पुरस्कार लेने वह नहीं जा सकी, आने वाले कल की दोपहर को विशेष भोज है, उसे टेबल ड्यूटी मिली है, इसी बहाने कई लोगों से मुलाकात भी हो जाएगी. आज जून के लिए लिखी एक कविता ब्लॉग पर डाली, ‘तुम्हारे लिए’. चर्चा मंच पर भी ली गयी है, उसे अपने ब्लॉग पर चर्चा मंच का लिंक डालना सीखना चाहिए. दोपहर को साहित्य अमृत पढ़ा, गन्ना खाया, यानि कुछ तन के लिए कुछ मन के लिए. आत्मा के लिए वैसे भी कुछ करना नहीं है, साक्षी भाव में रहना है, जो हो रहा है, उसे देखते जाना है. सतो, रजो व तमो गुण के कारण ही मन, बुद्धि इन्द्रियां आदि अपना कार्य करते हैं, ये प्रकृति हैं और आत्मा शिव तत्व है. वे चैतन्य हैं लेकिन जड़ के साथ एक होकर स्वयं को सुखी-दुखी मानते हैं. साक्षी भाव में आते ही सब बदल जाता है. पंच क्लेश मंद हो जाते हैं, पंच विकार भी कम होने लगते हैं, एक सन्नाटा छाने लगता है भीतर !

कल क्लब में उसने इतने वर्षों में पहली बार नृत्य किया, कई सारे अंग्रेजी गानों की धुनों पर, गीत तो समझ में नहीं आ रहे थे पर संगीत अच्छा था, भीतर नृत्य उमग आया है, ड्यूटी भी दिल लगाकर की, लोगों को भोजन परोसना एक अच्छा काम है, खाना बना भी अच्छा था, खाया भी और घर आके कुछ हुआ भी नहीं. मौसम यहाँ बहुत सुहावना है, उत्तर भारत में सर्दी ने रिकार्ड तोड़ दिए हैं. नन्हे के लिए जून ने ढेर सारी गजक व खजूर आदि भेजी है, चार-पांच दिनों में उसे मिल जाएगी. माँ ने आज फिर टीवी बंद किया और उसने उनसे कारण पूछा. आदत बदलना कितना मुश्किल है, जून को भी जोर से बोला, वह उसकी बात को यूँही उड़ा देते हैं, पर उसे अपनी वाणी पर जरा भी संयम नहीं है, जब बात मुँह से निकल जाती है, तब होश आता है, पर इतना होने पर भी क्योंकि भीतर कर्ताभाव नहीं है, परमात्मा की कृपा का अनुभव निरंतर होता रहता है. कभी-कभी तो आश्चर्य होता है, पर परमात्मा असीम है, उसकी करुणा भी असीम है, असीम है उसकी दयालुता, उनकी कमजोरियां कितनी भी हों उसकी कृपा से तो कम ही होंगी ! जीत उसी की होगी, ध्यान की समझ भी आने लगी है, भीतर जब समरसता हो, शांति का अनुभव हो तो मन ध्यानस्थ ही होता है, एकाग्रता उसका परिणाम है. जून भी अपने लिए एक डायरी लाये हैं, एक नन्हे को भेजी है. डायरी में लिखने के लिए कितना कुछ है, नये-नये शब्द, नये विचार तथा नये अनुभव ! बहर माली काम करता हुआ पिताजी से बातें कर रहा है, वह पानी डाल रहे हैं, फूलों को जरूर उन दोनों का स्नेह पसंद आता होगा !  

Thursday, October 6, 2016

नये वर्ष के कार्ड्स


आज सुबह-सुबह टीवी पर एक आचार्य जी से (नाम याद नहीं है ) पतंजलि योग सूत्रों की अद्भुत व्याख्या सुनकर मन स्थिर हो गया. द्रष्टा जब अपने आप में स्थित हो, मन समाहित हो, बुद्धि स्थिर हो तो क्षणांश के लिए उस स्थिति का अनुभव होता है. वहाँ से आने के बाद अपूर्व शांति और आनंद सहज ही भीतर उत्ताल तरंगों की भांति व्यक्त होता है. दोपहर को एक कविता की पंक्तियाँ बार-बार मन में आ रही थीं पर अब वह स्मृति खो गयी है, संकल्प जाने कहाँ से उठते हैं फिर विलीन हो जाते हैं, जो संकल्प वे अपने बोध में उठाते हैं वे उनके भाग्य का निर्माण करते हैं. नये वर्ष में एक लक्ष्य तो है वजन घटाना जो पिछले वर्ष बढ़ गया है. घर की साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देना है और सेवा के कार्यों को तरजीह देनी है. जून कुछ कार्ड्स लाये हैं, उसने सोचा उन्हें यहीं उन लोगों को देगी जिनसे उनका वास्ता पड़ता है. लाइब्रेरियन, को-ओपरेटिव मैनेजर, बैंक मैनेजर, मृणाल ज्योति आदि आदि..नैनी अभी अस्पताल में है, उसका आपरेशन कल होगा. दो सखियों के बच्चे छुट्टियों में अपने-अपने घर आये हुए हैं, न मिलने आये, न फोन ही किया. बच्चों की अपनी एक दुनिया होती है जिसमें उनके माता-पिता भी नहीं जा सकते फिर अंकल-आंटी तो दूर की बात है. आत्मा रूप से देखे तो वे भी वह स्वयं ही है, जो निकट ही है, उससे कैसी दूरी और कैसी निकटता. उसके अंतर का स्नेह सदा उन्हें मिलता रहे. आमीन !

आज छोटी भाभी का जन्मदिन है, उसके लिए एक कविता भेजेगी. उसने अंग्रेजी में एमए किया है, गाने तथा चित्रकला का शौक है या था. सुंदर है, लम्बी है, गोरी है, रंग ऐसा जैसे दूध में चन्दन व हल्दी मिलायी हो. पढ़ने का शौक है, घर का काम दक्षता से करती है. तीन बहनों में सबसे बड़ी है. आज फिर सासुमाँ ने उसके कमरे में आकर टीवी बंद कर दिया, उन्हें शायद आवाज से भी डर लगने लगा है. जब उसने पूछा, आपने क्यों बंद किया तो कहने लगीं, कमरे में कोई नहीं था. एक सखी से बात की फोन पर, उसकी मौसेरी बहन की कल मृत्यु हो गयी जो बीमार थी. दीदी को भी ज्वर हो गया है. बड़ी ननद की बेटी दुखी है, उसकी बात पक्की होते-होते टूट गयी है. घर से खबर आई, जून की मासी का देहांत हो गया है, एक-एक कर सभी को जाना है, कोई पहले, कोई बाद में जाने ही वाला है. चारों और से मृत्यु, अस्वस्थता और दुःख के समाचार ही आते हैं, उनके भीतर ही जन्नत हो सकती है यदि हो तो, बाहर तो उसके ख्वाब ही देखे जा सकते हैं. जीवन सम्भवतः इतना जटिल पहले कभी नहीं था, अथवा तो हर युग के अपने कुछ दुःख होते हैं. इस वक्त वह बाहर लॉन में झूले पर बैठी है, इस कोने में धूप देर तक रहती है. गुलदाउदी के कुछ फूल वर्षा में खराब हो गये हैं, उन्हें अलग करना है. कल चार डीवीडी लिए आर्ट ऑफ़ लिविंग के, उनके पड़ोसी टीचर हैं एओल के. कुछ वर्ष पूर्व ऐसा होने पर वे स्वयं को भाग्यशाली मानते, पर अब जून को ज्यादा रूचि नहीं रह गयी है, वह भी अब सत्संग व क्रिया घर पर ही करती है. गुरुजी से कोई दूरी अब लगती नहीं. जून कल तीन दिनों के लिए अहमदाबाद जा रहे हैं. परसों उनके विवाह की सालगिरह है. उन्हें अब इस रिश्ते में दूसरे कई पहलू नजर आने लगे हैं, प्रेम, विश्वास, भरोसा, मित्रता और एक साहचर्य की भावना, देह से ऊपर मन व आत्मा के स्तर पर वे जुड़ गये हैं. अब इस रिश्ते की नींव बहुत गहरी हो गयी है. कुछ वर्ष पूर्व, कई वर्ष पूर्व उसे इसकी चूलें हिलती नजर आई थीं. वैसे मन का कभी भरोसा नहीं करना चाहिए, मन के साथ रहना तो ऐसा ही है जैसे कोई अपने शत्रु के साथ एक ही घर में रह रहा हो !



Wednesday, October 5, 2016

पित्ताशय में पथरी


आज शाम को लेडीज क्लब की मीटिंग है, उसे दो कविताएँ पढ़नी हैं. नेट नहीं चल रहा है आज, कुछ देर ‘गीतांजलि’ के भावानुवाद के कुछ भाग को टाइप किया. नेट न होने से कुछ देर बुरा लगा, फिर खुद को समझाया, अपना लक्ष्य तो एक ही है, और वह है परमात्मा की प्राप्ति, उस एक लक्ष्य में जो सहायक है उसे करना व जो बाधक है उसे छोड़ते जाना ही बुद्धिमत्ता है, उसे लगता है अहंकार की पुष्टि के सिवा अभी उसके लिए नेट का क्या उपयोग है. कविता पोस्ट करना फिर उस पर आये कमेंट्स को पढ़ने की आकांक्षा, यह अहंकार की पुष्टि ही हुई. जो भी होता है उसमें कुछ न कुछ अच्छाई छिपी होती है. परमात्मा की ओर उन्मुख होने में जो भी सहायक हो वही वन्दनीय है, अस्तित्त्व चाहता है कि उसके मन, बुद्धि पावन हों, वह उसके द्वारा प्रकट हो. जीवन का एक-एक क्षण कितना अनमोल है और हर क्षण वह उनके साथ ही है, बस नजर उठाने भर की देर है !

आज सुबह एक सुंदर अनुभव हुआ, अब स्वरूप में मन टिकने लगा है. पढ़ा था कितनी बार जैसे एक छोटा सा अवरोध विस्तीर्ण गगन को ढक लेता है, वैसे ही छोटी सी वृत्ति आत्मा को ढक लेती है, आत्मा जस की तस रहती है, उसका कुछ आता-जाता नहीं है, उसे घटते हुए देखा, कितना सुकून है इस अहसास में. उस क्षण भीतर मौन पसर जाता है, कुछ भी जानना, पाना, चाहना शेष नहीं रहता, जीवन एक खेल बन जाता है. एक स्वप्न कहें या खेल..आज शाम को पब्लिक लाइब्रेरी जाना है, जहाँ इस वर्ष एक बार भी नहीं गयी, आज संयोग बना है, एक वरिष्ठ सदस्य की विदाई है. कल मृणाल ज्योति भी जाना है, कम्पनी में पेट्रोलियम सेक्रेटरी आ रहे हैं. उनकी पत्नी कल शाम को वहाँ जाएँगी, स्कूल देखना चाहती हैं. आज नेट चला पर समय सीमा निर्धारित कर दी है. कल वर्ष का अंतिम दिन है, जाते-जाते इस वर्ष वर्ष की विदाई के रूप में नये वर्ष की शुभकामना की कविता लिखेगी. एक बार फिर जीवन को नये अंदाज में जीने का संदेश देने नया वर्ष आया है. नये साल में बहुत कुछ नया करना होगा. जीवन को एक नये अंदाज में जीना होगा, क्योंकि अब मार्ग मिल गया है, सो किस तरह समय का अच्छे से अच्छा उपयोग हो सके, अपनी ऊर्जा का और अपनी योग्यता का इसका ही प्रयास करना है ! अभी-अभी पता चला, नैनी के गॉलब्लैडर में पथरी है, इसलिए उसे इतना दर्द होता है, आपरेशन करवाना पड़ सकता है. वह पिछले कई दिनों से शिकायत कर रही थी. नया वर्ष उसके लिए भी स्वास्थ्य लायेगा.   



Tuesday, October 4, 2016

सलाद पत्ता


आज उसने ब्लॉग पर यीशू पर लिखी एक कविता पोस्ट की है, जिसे और भी कुछ लोगों को भेज सकती है, फेसबुक पर भी. हिन्दयुग्म, हिंदी कविता, सरस्वती सुमन, ऋशिमुख, साहित्य अमृत, नन्हे, पिताजी सभी को भेज सकती है. प्रिंट करके स्थानीय स्कूल के फादर को भी दे सकती है. बड़ी ननद की बड़ी बेटी के लिए जो कविता लिखी थी, उसे भी भेज देना ठीक रहेगा, उसकी शादी की बात पक्की हो गयी है. आज गुलदाउदी के गमले घर के द्वार पर सजाये हैं, घर से निकलते, प्रवेश करते उन पर नजर पड़े और दिल महक जाये, फूल खुदा की खबर देते हैं !

आज क्रिसमस है. सुबह जल्दी उठी, प्राणायाम आदि किया. आज जून ने मेथी का पुलाव बनाया है अभी सलाद पत्ता लेने बाहर बगीचे में गये हैं. क्रिसेन्थमम के फूल घर से निकलते ही दिखाई देते हैं, सुंदर हैं, ऐसे ही जब उनकी आत्मा की कली खिल जाती है तो वे भी फूल बन जाते हैं, उनकी मुस्कान तब कोई नहीं छीन सकता, सारे विरोध समाप्त हो जाते हैं, सारी वासनाएं मिट जाती हैं, कामना का अंत हो जाता है और भीतर एक रस शांति का अनुभव होता है !


आज वह लेडीज क्लब की एक सदस्या से मिलने गयी थी. उनके पैर में प्लास्टर लगा था, बरामदे में बैठी थीं. उनके लिए भी एक कविता लिखी, कल सेक्रेटरी के लिए लिखी थी. पिताजी आज बहुत दिनों बाद टहलने गये. यह वर्ष बीतने को है. नये वर्ष में उसे अपने ब्लॉग को भी बदलना है. आज सुबह अभी नींद में ही थी कि एक सुंदर दृश्य दिखा, वह स्वप्न नहीं था, ध्यान की एक अवस्था थी, सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा था. अचानक भाव उठा कि सद्गुरु ऐसे ही सब घटनाओं के बारे में जान जाते होंगे, तभी उन्हें सर्वज्ञ कहते हैं. वह साधक के मन की बातें भी यदि चाहें तो जान सकते हैं. श्रद्धा से मन भर गया और कुछ देर वहीं बैठी रही. न ठंड का अहसास हो रहा था न ही कहीं दर्द या असुविधा का. सद्गुरु का आश्रय लिया है उस शिव तत्व ने, उनका मन स्फटिक सा शुद्ध है, वह परमात्मा ही हो गये हैं अथवा तो हैं, इस भाव को तीव्रता से अनुभव किया. सुबह नौ बजे तक मन इसी भाव दशा में रहा. उनकी उपस्थिति का अहसास इतनी शिद्दत से हुआ. बाद में घर के कामों में वह भाव लुप्त हो गया. अभी-अभी चंपा की गंध आई एक पल के लिए...वह परम उनके द्वारा प्रकट होना चाहता है. वे हर तरह से उसमें बाधा देते हैं. अहंकार, लोभ, मोह, काम, क्रोध, दम्भ और न जाने कितने-कितने अवरोध रास्ते में खड़े कर देते हैं अन्यथा तो वह सदा उपलब्ध है, उपलब्ध ही नहीं वह आतुर भी है, बात एकतरफा नहीं है, एकतरफा यदि हो भी तो उसकी तरफ से ही है, उनमें न वह शक्ति है न वह आतुरता !