Friday, February 24, 2017

अंतिम यात्रा


आज सत्संग का दिन है, पिछले हफ्ते की तरह सम्भवतः आज भी उसे सद्गुरू और परमात्मा के साथ भजन गाने हैं. दोपहर को नेहरू मैदान गयी, जहाँ मृणाल ज्योति स्कूल के विशेष बच्चे गणतन्त्र दिवस के लिए नृत्य की रिहर्सल कर रहे थे. एक सहयोगी महिला मिलीं वहाँ, सुंदर गोल गोर चेहरे पर लाल बड़ी सी बिंदी, स्नेह भरी ! एक अन्य परिचिता भी आयीं थीं. जून और माँ-पिता जी डिब्रूगढ़ से कल लौटेंगे. दीदी से बात की, उन्हें भी अपने अनुभव लिखने को कहा है, देखें, कब लिखती हैं. कल छोटी बहन के विवाह की सालगिरह है, उसे कविता भेजनी है. अभी-अभी एक सखी का फोन आया वह शाम को सत्संग में उसका साथ देगी.

जून माँ-पिताजी को डिब्रूगढ़ से लाये और यहाँ के अस्पताल में उन्हें छोड़कर सीधा दफ्तर चले गये, वह शाम को जाएगी. उसने सूप की तैयारी कर ली है. कल गाजर का हलवा भी बनाया था, मिठाई भी है, सो शाम का नाश्ता काफी है.
 ‘गणतन्त्र की क्या पहचान
न्याय, समानता, व सम्मान’
कल उसने सभी को गणतन्त्र दिवस पर संदेश भेजे.

कल यहाँ भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम आये थे, आज भी यहीं हैं. जून इसलिए क्लब गये हैं, जहाँ उनका सम्बोधन होगा. आज बसंत पंचमी भी है. माघ शुक्ल पंचमी, भीतर मौन छाया है. मौन ही सत्य है, शब्द जैसे ही जन्मे, कुछ असत्य भी जन्मा साथ ही, अविद्या यही है, विद्या ही आत्मा है, वही परा है. शेष सब क्रीड़ा है, लीला है. मौन में जितना अधिक देर रहा जाये अच्छा है. टीवी पर बापू की कथा आ रही है. अभी नरेंद्र कोहली अपना मत रख रहे थे.

अगला माह आरम्भ हो गया, दो दिन बीत गये, वह लिखने का समय नहीं निकाल पायी. घर और अस्पताल आते-जाते आजकल दिन कैसे बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता. आज एक सखी की बिटिया का जन्मदिन है, उसके लिए अभी तक कुछ नहीं लिखा. कल एक दूसरी सखी की सासुमा से मिली, कह रही थीं, औरत तो सहनशील होती ही है, उसके पास धैर्य होता है. छोटी बहन ने बताया, महिला होने के कारण उसे कम वेतन दिया जा रहा है. एक महिला ब्लॉगर लिखती हैं, औरत जब बेगारी करना नहीं चाहती तो उसे बुरा मान लिया जाता है. उसे लगता है, हरेक का सम्मान उसके अपने हाथ में है, कि वह कितनी समझ से काम लेती है, जीवन को एक विशाल दृष्टिकोण से देखती है. अध्यात्मज्ञान के बिना कोई भी पूर्ण संतुष्ट नहीं हो सकता.

फिर दो दिनों का मौन, आज कई दिनों बाद पुनः बदली छाई है. ठंड बढ़ गयी है. जून देहरादून गये हैं. चार दिन बाद आयेंगे. कुछ देर में ड्राइवर आकर माँ का दोपहर का भोजन ले जायेगा.

कल शाम माँ ने देह त्याग दी. देह जर्जर हो गयी थी. पिताजी बहुत रो रहे हैं कल से. इस समय सभी लोग उन्हें लेकर गये हैं. मिट्टी की देह मिट्टी में ही मिल जाएगी और आत्मा अभी तक यहीं होगी या नई देह भी ले चुकी हो, कौन जानता है ? कल रात सभी लोग अस्पताल पहुंच गये थे. जून के मित्र व दफ्तर के कई लोग. एक सखी रात भर उसके साथ ही रही, वह परिवार के सदस्य की तरह अपना फर्ज निभा रही है. सुबह से ही अन्य सभी सखियाँ कुछ परिचित महिलाएं सभी लोग आये. दुःख के इस क्षण में सभी ध्यान रख रहे हैं. दोपहर तक जून व नन्हा भी आ गये. उसका मन पूर्ववत् शांत है. जो कुछ घट रहा है वह ऐसा ही होना था, एक नाटक को जैसे मंचित किया जा रहा है, ऐसा ही लग रहा है, इससे अधिक कुछ नहीं. जो लोग दूर हैं उन्हें भी ज्यादा अंतर नहीं पड़ रहा होगा. दोनों ननदों के मन जरूर यहीं पर होंगे. समय के साथ सारे दुःख कम होते जाते हैं, आने वाले दस दिन उनके जीवन के एकदम अलग से दिन होंगे.

पिछला एक हफ्ता डायरी को हाथ भी नहीं लगाया, न ही समय था न ही मन हुआ. उस दिन शाम को जून और नन्हा शमशान घाट से लौटे तो साथ में उनके दो मित्र भी थे. एक सखी ने दलिया भेजा था ढेर सारा, दूसरी ने सब्जी.. रात को सबने खाया. अगले दिन दोपहर को उसके दो भाई आ गये और जून के एक ममेरे भाई. गरुड़ पुराण का पाठ चल रहा था. दिन भर लोग आते रहे. दोपहर को माँ की एक सखी ने बहुत कुछ भेज दिया था. शाम को भी भोजन बाहर से आ गया. उसके अगले दिन सुबह नन्हा स्टेशन पर दोनों बुआजी को लेने गया डिब्रूगढ़, कल उन्हें छोड़ने भी गया, आज उसे वापस जाना है. श्राद्ध का सारा इंतजाम आराम से हो गया था, सुबह पंडितजी ने हवन किया, फिर पांच पंडितों का भोजन तथा दोपहर बारह बजे से श्राद्ध भोज आरम्भ हुआ. काफी लोग आये, कुछ नहीं भी आये. भाई लोग अगले दिन चले गये थे. उसका मन अशांत रहा. अचेतन में बैठी प्रवृत्तियां उभर कर ऊपर आ गयीं. साधना कुछ हो नहीं पायी. उनके मन में न जाने कितना कुछ भरा हुआ है. जून भी पता नहीं क्या सोचते होंगे. जीवन में कभी उथल-पुथल होती है तो कभी गहराई में दबा विकार भी ऊपर आ जाता है. खबर देता है कि अभी मंजिल दूर है. नौ बज गये हैं, आज भी अभी तक नन्हा सोकर नहीं उठा है, साढ़े ग्यारह बजे उसे जाना है.

पिछले दो दिन पुनः नहीं लिख सकी. आज जून को यात्रा पर निकलना है. बनारस की यह यात्रा दो उद्देश्यों के लिए है. माँ की अस्थियों के विसर्जन के लिए तथा बीएचयू में एक कांफ्रेंस में शिरकत करनी है. पिताजी का मन अभी तक उदास है.             

   

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