Friday, April 7, 2017

केसरिया बदलियाँ


परमात्मा हर पल उनके मन का द्वार खटखटाता है, वे कभी खोलते ही नहीं, वह तो स्वयं प्रकट होने को आतुर है. वह प्रतिपल बरस रहा है, उसे देखने की नजर भीतर पैदा करनी है. चेतना का आरोहण करना है, भीतर जो अनंत ऊर्जा है उसे एक आकार देना है. जो स्वयं के प्रतिकूल हो वह कभी किसी दूसरे के साथ भूलकर भी न करें, क्योंकि दूसरों को दिया दुःख अंततः अपने को ही दिया जाता है, चेतना एक ही है.  उन्हें अपने ‘होने’ की सत्ता को सार्थक करना है, अपने होने के प्रयोजन को सिद्ध करना है. वे अपनी पूर्ण क्षमता को विकसित कर सकें, जो बीज में सुप्त है, वह फूल बन कर खिले. जीवन का अर्थ क्या है, इसे जानें. वे किस निमित्त हैं, वे किसका माध्यम हैं, किसके यंत्र हैं, किसके खिलौने हैं, इस विशाल आयोजन में उनका भी योगदान हो, उनके पास जो भी है, देह, मन, बुद्धि सभी उसके काम आ जाये, वे उसके सहचर बन जाएँ. सन्नाटे में भी जो उनके साथ रहता है, अँधेरी स्याह रात्रि में, निस्तब्धता में भी जो उनके निकटतम है, उसके हाथ में स्वयं को सौंप कर निश्चिन्त हो जाना है. आज सुबह चार बजे उठी, अकेले ही टहलने गयी, बाहर बगीचे में ध्यान किया, सूर्य की रौशनी में आकश और पेड़ किस अद्भुत तरीके से चमचमा रहे थे !

परमात्मा स्वयं को कितने रूपों में प्रकट कर रहा है, मानव देख नहीं पाता, आश्चर्य है, सुंदर वृक्ष, हरी घास, चहकते पंछी, उगता हुआ सूर्य, प्रातःकालीन शीतल सुगन्धित पवन सभी कुछ उसी की याद दिलाते हैं. उनके भीतर का आकाश अनंत शांति व निस्तब्धता भी उसी की याद दिलाते हैं. सारा जगत एक अलौकिक शांति से भर गया लगता है. इस जगत की हर शै उसी की लीला में सहभागी है. वे मानव ही स्वयं को पृथक मानकर उससे अलग हो जाते हैं !

आज से नया माली काम पर आ रहा है, अमर सिंह, जो सारे पंजाबी लोगों को एक ही मानता है, जैसे उन्हें सारे जापानी एक जैसे लगते हैं. सुबह सूर्य का लाल गोला दिखा पर बीस मिनट बाद ही दृश्य बदल गया, कोहरा आ गया, सूरज श्वेत हो गया था. अभी तक धूप नहीं निकली है, परमात्मा उसे रात को जगाने आता है, पर नींद और स्वप्न की दुनिया में मन कैसे खो जाता है. आज शाम को क्लब की मीटिंग है. बाएं तरफ की पड़ोसिन को-ओर्डीनेटर है, उसे फोन करके न आ पाने के लिए कहेगी.

जिसे ऐसी प्रसन्नता चाहिए जो अपह्रत न हो सके, खंडित न हो सके, बाधित न हो सके, उसे अपना अंतःकरण अस्तित्त्व के प्रति खोल ही देना होगा. ऐसी समाधि जिसे चाहिए जो सहज हो. समता, स्थिरता, संतुलित रहना ये सभी तो सहजता से मिलते हैं. समाधान साथ-साथ चलता रहे तो अंतःकरण मोद से भरा रहता है. जो संकल्प को छोड़ना जानता है, वही उसे सिद्ध भी करता है, जो त्यागना सीख गया, वह सब पाना सीख गया. कितने सुंदर शब्द उसने सुने आज सुबह..आज तीसरा दिन था, सूर्य देवता को अपना रूप बदलते हुए देखा. परसों चमचमाता हुआ बाल सूर्य देखा, कल कोहरे के पीछे श्वेत सूर्य और आज बादलों के पीछे छुपा सूर्य. अभी तक धूप में तेजी नहीं आई है !

एक नन्हे से बीज में जीवित रहने की प्रबल इच्छा होती है, कितनी बाधाएं पार करके वह अंकुरित होता है, पनपता है, वह मिटने को तैयार है तभी वह ‘होता’ है. आज सुबह चार बजे से पहले उठी. सूर्य देवता ने आज नया रूप धरा था. सलेटी बादलों में सुनहरी व केसरिया किरणों का जाल झांक रहा था. प्रकृति का रूप कितना मोहक है, उसके पीछे छिपे उस अव्यक्त चेतन के ही तो कारण, इस सुन्दरता को निहारने वाला भी तो वही चेतन है, वही इस अपार सौन्दर्य को जन्म देने वाला है और वही इसका चितेरा भी ! कल शाम मृणाल ज्योति से फोन आया, आज एक मीटिंग में जाना है. ॐ की ध्वनि आ रही है, पता नहीं कहाँ से अक्सर यह ध्वनि उसे सुनाई देती है, गम्भीर स्वरों में कोई ॐ कहता है !   



No comments:

Post a Comment