Saturday, June 3, 2017

इंद्र का जादू


आज राखियाँ भेज दीं, पता नहीं क्यों इस बार उसे हर बार जैसा उत्साह नहीं हो रहा था, कार्ड भी नहीं बनाया न ही कविता लिखी. जो परमात्मा चाहे, अब तो वही है..वही है.. वर्ष के सातवें महीने का अंतिम दिन ! यानि आधे से ज्यादा साल गुजर गया है. इसी महीने पुराने घर की नैनी के पुत्र का जन्मदिन था, वे भूल ही गये, न ही उसकी माँ उस दिन आई या उसे लायी. उसे ‘शिव’ नाम भी उसी ने दिया था. पिताजी ने उसके लिए उपहार खरीद कर रखा था, पर वे दे नहीं पाए. खैर.. देर आयद दुरस्त आयद, आज ही बुलाकर देगी. कल शाम छोटी बहन के लिए कविता लिखी, फिर जून के एक सहकर्मी के लिए, अब उसके लिए लिखना सहज हो गया है, परमात्मा की कृपा नहीं तो और क्या है. कुछ देर में मृणाल ज्योति के लोग आने वाले हैं, पिताजी के नाम से स्कालरशिप का जो स्वप्न उसने देखा था, वह पूर्ण होने वाला है. उनकी आत्मा को कितना सुकून मिलगा, उनका पुण्य बढ़ेगा. कल शाम को भजन में वे चार महिलाएं आयीं, जिन्हें बुलाया था, उन्हें अच्छा लगा. समूह में भजन व ध्यान करना सदा ही प्रभावशाली होता है, गुरूजी भी कहते हैं.
पहली अगस्त ! सारे घर के कैलेंडर बदलने का दिन, इस महीने किसके जन्मदिन और अन्य शुभ दिन पड़ते हैं यह देखने का दिन और एक और माह की शुरूआत का दिन, सुबह वे उठे वक्त पर और प्रातः भ्रमण को भी गये, फूलों से भरे वृक्ष और धुली-धुली सड़कें..परसों जून को फिर टूर पर जाना है चार दिन के लिए. इस समय दोपहर के सवा दो बजे हैं, अचानक वर्षा होने लगी है, मूसलाधार वर्षा, सारा बगीचा पानी से लबालब भर गया है. पहले तेज गर्जन-तर्जन हुआ, काले बादल आ गये जैसे इंद्र अपनी सेना लेकर आया हो. पानी की बूँदें उसे अपनी ओर खींचने लगीं. उसने सोचा..वर्षा में नहाने का कितना अच्छा दिन है. आज गर्मी बहुत है और इतना बड़ा बगीचा..नीचे भी जल ऊपर भी जल.. वह कुछ देर जल में भीगती रही और फिर जब वर्षा थम गयी तो पुनः कलम उठा ली..   
अचानक छा गये थे काले-कजरारे मेघ अंबर पर
और गरजने लगा था सेनापति इंद्र का
पवनदेव लहराने लगे थे
ऊंचे वृक्षों की डालियाँ
पहले पहल पड़ीं थीं इक्का-दुक्का बूँदें उस दोपहरी
पर देखते ही देखते तीव्र हुआ वेग
जल ही जल भरा चारों ओर क्षण भर में
छप छप छपाक छपाक
कुछ दूर तक ही नजर आती थीं बूँदें आकाश में
ऊपर जिनके सदा की भांति निर्मल था अम्बर
मानो खबर न हुई उसे
और मध्य में ही रचे जाता हो कोई तिलिस्म
अपने जादुई स्पर्श से
कैसे बैठे रह सकता है कोई अडोल
प्रकृति के इस जल विलास को देखकर
जहाँ नीचे भी जल था और ऊपर भी
जिसका स्पर्श अनुपम था और
सुखदायी बड़ा धरा का अंक
सिमट आया था अस्तित्त्व उस क्षण
उसकी आँखों में
और रेशा-रेशा सरस हो गया अंतरतम तक
बन गयी थी वह अतिमोहक प्रकृति का भाग
जैसे पंछी जैसे पेड़
हरी घास और अधखिली कली
वर्षा के राग संगीत मय थे और
उसकी छुअन मखमली !

   

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