Monday, June 5, 2017

आंवले की डाल


छोटे भाई का फोन आया था परसों रात सोने से पूर्व, छोटी बुआजी जो दो वर्ष पूर्व घर से चली गयीं थीं, उनकी खबर मिल गयी है. वह बंगलूरू स्टेशन पर थीं, जब पुलिस द्वारा टाइम्स ग्रुप के करुणा ट्रस्ट में पहुंचायी गयीं और वहाँ उनका मानसिक इलाज होता रहा. जब उन्हें अपने घर की याद आयी तो वहाँ के लोगों ने लखनऊ पुलिस से सम्पर्क किया और आज सुबह वे घर आ गयीं. उनका पुत्र उन्हें लेने गया था, वह जहाँ नौकरी करती थीं उस दफ्तर के लोगों ने  सहायता की. नन्हे ने उनसे बात की पर मिलने नहीं जा सका. कल सुबह उसने हिटलर की आत्मकथा पढनी शुरू की है, अभी तो रोचक लग रही है, देखे, क्या मनोदशा है उसकी, परमात्मा किससे क्या करवायेगा, कौन जानता है. हरेक को पूर्णता की ओर जाना है. जिस क्षण भी कोई अपूर्णता का अनुभव करता है वही क्षण उसे चुभन देता है. भूत में जिस क्षण उन्होंने अपूर्णता का अनुभव किया है, वे सारे क्षण उनके मन पर संचित हो गये हैं, उन सबका भार उठाए वे आगे बढ़ते हैं, बढ़ते क्या हैं, घिसटते हैं. उन्ह किसी से कुछ कहना था, पर कह नहीं पाए तो एक भार सिर पर बैठ गया. वे चाहें तो इसी क्षण में पूर्ण हो सकते हैं, हल्के और खाली, क्योंकि वे सारी घटनाएँ जैसी घटनी थीं, घट चुकी हैं. दीदी से बात की, वह भी यही कह रही थीं, एक ही चेतना  है सबमें जो विभिन्न नाम रूपों के द्वारा काम करवा रही है. वह परसों आस्ट्रेलिया जा रही हैं, अब शायद वहीं से अगली बात हो.

जून कल दोपहर गोहाटी चले गये. दोपहर को वह क्लब के काम से बाहर गयी और शाम को मीटिंग में, लौटने में पौने नौ बज गये थे. इसी माह क्लब की पत्रिका निकलेगी, उसके लिए एक नाम का चुनाव करना है. ऐसा नाम जो क्लब की सदस्याओं में जोश भी भरे और कुछ नया करने का जज्बा भी. बगीचे में आंवले के पेड़ की एक बड़ी डाल टूट कर गिर गयी थी कल रात की आंधी में, उसे साफ करवाया. आज फिर दीदी से स्काइप पर बात हुई, वह अभी देहली में हैं, बड़ी बेटी के यहाँ गयी थीं, उनकी दोहती को देखा, उसके लिए एक कविता भेजी, बहुत प्यारी है वह. जून परसों आ रहे हैं. नन्हे से पूछा उसने, कैमरे से वीडियो टीवी पर कैसे देख सकते हैं, उसने जो बताया वह काफी आसान था. उसे पिताजी का एक वीडियो एक सखी को दिखाना है. आज भी तेज वर्षा हो रही है. उसने भीगी-भीगी सी एक कविता लिखी, जो ब्लॉग पर डाल रही है. कल ईद है, वे सेवइयां बनायेंगे.   

जून आज वापस आ गये हैं, घर जैसे भर गया है. ढेर सारे फल, टिंडे, नींबू, सूखे मेवे, कुकीज और उसके लिए नये कंगन लाये हैं अपने साथ. नन्हे का एक सूटकेस यहाँ पड़ा था, जिसकी चाबी उसने खो दी थी. जिसे पिछले महीने खुलवाया था. उसके कालेज के फोटो, ग्रीटिंग कार्ड्स आदि उसमें पड़े हैं और कुछ चिठ्ठियाँ भी. हर व्यक्ति का अपना एक अतीत होता है. हर व्यक्ति अपने भीतर कितना कुछ छिपाए रहता है. उसने भी खुद को पहचाना है, कितना कुछ अनुभव किया है और आज जो भी है वह उन्हीं का परिणाम है. वह बहुत संवेदनशील है, बहुत स्नेह भरा है उसके भीतर पर साथ ही सबसे अलग भी, एक वैराग्य की भावना भी है. उसका जन्म जिन परिस्थितियों में हुआ, बचपन में उसे जैसे संस्कार मिले, उसी के अनुसार ही तो वह बड़ा हुआ. वे स्वयं ही जब आवेगों के वशीभूत थे, अपना ही पता नहीं था तब उन्होंने उसे बड़ा किया. उसके दुःख उनके ही हैं. हर आत्मा अपनी यात्रा कर रही है. वह कुछ संस्कार अवश्य ही पूर्व जन्म के लाया होगा लेकिन वे उनके सजातीय होंगे तभी तो वह उनके जीवन में आया. अच्छा है कि अब वह सजग है, अब उसके जीवन में ऐसी कोई बात नहीं है जो उन्हें ज्ञात नहीं है. 

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