Wednesday, July 12, 2017

किताबों वाला घर


जून का महीना भी कल आरम्भ हो गया. मौसम काफी गर्म है. आज स्कूल गयी थी, करेंट नहीं था, बच्चों को पसीना बहाते हुए व्यायाम/आसन कराए. छोटे बच्चे बहुत आनंद लेते हैं. एओल की टीचर का फोन आया, वह कल से आने वाली थीं, पर अब लडकियों को वहीं बुलाया है. कल से वे जाएँगी. शाम के सवा चार बजे हैं, बाहर धूप इतनी तेज है जैसे भरी दोपहर हो. ब्लॉग पर उसकी कहानी अब अध्यात्म की ओर बढ़ रही है. एक वर्ष पहले से ही भूमिका बननी शुरू हो गयी थी, तभी क्रिया के दौरान वह अनुभव हुआ. सद्गुरू तक उसकी प्रार्थना पहुंच ही गयी थी. कितना विचित्र है परमात्मा का यह चक्र, यह व्यवस्था कितनी अबूझ है. वह परम कितना दूर है पर कितना निकट...जीवन कितना अद्भुत है, यदि वे जाग जाएँ तो हर पल उसकी उपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं. स्वप्न की धारा जो भीतर चलती रहती है, जिसने उनकी नींद को भी निर्दोष नहीं रहने दिया और उनके जागरण को भी, उसे रोकना ही साधना का लक्ष्य है. वह धारा उनके नियन्त्रण से बाहर हो गयी है क्योंकि वे इतने कमजोर हो गये हैं. पहले उन्हें जानना होगा किस तरह वे मन से पृथक हैं, जैसे आकाश बादलों के पार है, वैसे ही वे भी मन के पार हैं. स्वयं के मुक्त स्थान में स्थित होते ही वे मन के पार चले जाते हैं. जब वे उस स्रोत से जुड़ जाते हैं, उत्साह से भर जाते हैं, ऊर्जा से भर जाते हैं. उन्हें परमात्मा से जुड़कर पहले शक्तिशाली बनना है फिर इस धारा पर उनका नियन्त्रण होगा !

वही दोपहर की बेला है, पंछियों की आवाज के अतिरिक्त मौन की गूंज ही है जो सुनाई दे रही है. दोनों बहनें सो रही हैं, वे आज सुबह योग की कक्षा में गयी थीं, पहला दिन था, उन्हें आनंद नहीं आया. बच्चे तो बच्चे ही हैं, अब कल वे जाएँगी या नहीं, यह उन पर निर्भर करता है. आज सुबह भीतर जो भय जगा लेडीज क्लब के दफ्तर में चल रहे खिडकियों पर जाली लगाने वाले काम को लेकर, क्रोध के रूप में प्रकट हुआ नैनी की एक भूल के कारण उसके ऊपर, जो आज अचानक ही जल्दी आ गयी थी. एक ही ऊर्जा तो विभिन्न रूपों में प्रकट होती है. सुबह ध्यान किया, केवल शुद्ध चेतना में रहने का अभ्यास, स्वप्न की जो श्रृंखला जो भीतर चलती रहती थी अब खंडित होने लगी है, विचार वे स्वयं ही बनाते हैं और स्वयं ही उनसे पीड़ित होते हैं, सुबह इसका कितना स्पष्ट अनुभव हुआ. परमात्मा कितनी कृपा करता है जो पहले उन्हें प्रेम से भर देता है, वे तो उसे बाद में प्रेम कर पाते हैं. सद्गुरू को आज टीवी पर देखा, fb पर रोज ही देखती है. आज शाम उन्हें क्लब ले जाना है, आज क्लब का स्थापना दिवस है.

टीवी पर आज गुरूजी अपने कार्य के आरम्भिक दिनों के बारे में बता रहे हैं. हर इन्सान को अपना मार्ग स्वयं चुनना होता है और यदि वह सच्चे हृदय से प्रार्थना करे तो ईश्वर स्वयं उसका मार्ग प्रशस्त करते हैं. उन्हें अपने सीमित दायरे से बाहर निकल कर ही कुछ करना होता है. आज उसे क्लब की कुछ सदस्याओं के साथ मोरान ब्लाइंड स्कूल जाना है. सेक्रेटरी का फोन आया, उनके साथ इस वर्ष उसकी कई यात्रायें हो रही हैं, कितना कुछ सीखने को भी मिला है.

आज नन्हे के बचपन के मित्र, असमिया सखी के पुत्र का जन्मदिन था, उसने फोन किया. एक अन्य सखी से बात हुई, उन्होंने पोहा बनाने का अच्छा तरीका बताया, भांजियों ने वैसा ही बनाया. दोनों निकट ही बंगाली की दुकान पर भी गयीं, फल खरीदे और अपने लिए मैगी भी. दोनों बहुत शांत व समझदार हैं, अपने काम से काम रखने वालीं. क्लब की एक सदस्या सदा के लिए जा रही हैं, उनके पति रिटायर हो गये हैं, किताबों से भरा था उनका घर, ड्राइंग रूम में बड़ी सी आलमारी तो भरी ही थी, छोटी-छोटी शेल्फ पर भी ढेरों किताबें सजी थीं. उनके पति लेखक हैं, वे स्वयं भी लिखती हैं. वर्षों से बच्चों के लिए एक सांस्कृतिक विद्यालय चला रही हैं. उसने सोचा उनके लिए भी एक कविता लिखेगी. आज फेसबुक पर अस्सी वर्षीय एक महिला को सालसा नृत्य करते देखा, कमाल का नृत्य था, बच्चों की तरह वे घूम रही थीं.  देह, मन के अधीन रहे तो वे उसे अपनी इच्छा से प्रयोग कर सकते हैं. तमस और जड़ता से भरी देह मन पर हावी हो जाती है. जून आजकल बहुत व्यस्त रहते हैं, कल उन्हें दिल्ली जाना है. नन्हे के दफ्तर में एक प्रतियोगिता होनी थी, अच्छी ही होगी. वह अपनी टीम का हेड हो गया है अब. जे कृष्णमूर्ति की जो किताब वह वर्षों पहले बोस्टन से लायी थी, मिल नहीं रही थी, उस दिन मिल गयी, पढ़ना शुरू किया है.  


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