Thursday, December 28, 2017

पृथ्वी की गंध


रात्रि के सवा आठ बजे हैं. अभी-अभी वे बाहर से टहल कर आये हैं, रात की रानी की ख़ुशबू से बगीचा महक रहा है, सड़क पर आने-जाने वाले भी पल भर के लिए थम जाते होंगे, एक छोटी सी टहनी कमरे में लाकर रख दी है. पता नहीं धरती के गर्भ में कितनी गंध छुपी है, अनगिनत प्रकार की गंध लिए है पृथ्वी, जिन्हें युगों से वह लुटा रही है. शाम को मूसलाधार पानी बरसा, उन्होंने बरामदे में कुछ देर चहलकदमी की, टहलते हुए वह जून से दिनभर का हाल-चाल ले लेती है, कमरे में आकर बैठकर बातें करने में एक औपचारिकता सी लगती है. अकबर की मृत्यु हो गयी आज के अंक में. उसका पुत्र सलीम ही जहांगीर के नाम से मशहूर हुआ. कल दोपहर को नींद खोलने के लिए अस्तित्त्व ने कितना अच्छा उपाय किया, सचमुच ‘गॉड लव्स फन’ वह एक कार में है, दो सखियाँ भी हैं, ड्राइवर उतर गया है पर कार अपने आप ही चलती जा रही है. आगे जाकर टकराती नहीं है, पीछे लौटती है और तभी नींद खुल जाती है. ईश्वर हर क्षण उसके साथ है, उसका साथ इतना हसीन होगा, कभी नहीं सोचा था. आज से दो हफ्तों के बाद उन्हें लेह जाना है, कल से उसके बारे में कुछ पढ़ेगी. मंझला भाई अस्वस्थ है, अभी देहली में है, उनके जाने तक वह अवश्य ठीक हो जायेगा. बड़े भाई अपनी बिटिया के साथ छोटी बहन के पास विदेश गये हैं.

दोपहर को संडे क्लास में जाने के लिए जैसे ही तैयार होकर बाहर निकली, अचानक तेज वर्षा आरम्भ हो गयी, पूरे चालीस मिनट होती रही, रुकने पर वहाँ पहुँची तो कोई बच्चा नहीं था, या तो वे आकर चले गये अथवा आये ही नहीं. नन्हे से बात की, उसका एक मित्र मोटरसाईकिल से ‘भारत यात्रा’ पर निकला है, शायद उन्हें भी लेह में मिले, वह उन्हीं तिथियों में वहाँ जाने वाला है. कल उसके सहकर्मियों ने उस घर में एक भोज समारोह किया जहाँ से छह वर्ष पूर्व कम्पनी की शुरुआत हुई थी. सुबह अजीब सा स्वप्न देखा, उसका अर्थ था, साधना करके यदि कुछ पाने की, कुछ बनने की चाह है तो साधना व्यर्थ है. परमात्मा को पाकर यदि अपना कद ही ऊंचा करना है तो उससे कभी मिलन होगा ही नहीं. स्वयं को पवित्र करना ही साधना का उद्देश्य है. भीतर यदि कोई भी चाह शेष है तो चित्त शुद्ध हुआ ही नहीं. परमात्मा कितनी अच्छी तरह से उसे पढ़ा रहा है. वह कभी स्वप्नों के माध्यम से, कभी सीधे शब्दों के माध्यम से उसे मार्ग पर ले जा रहा है. वह कितना कृपालु है. उसकी महिमा को कौन जान सकता है. आज से औरंगजेब की कहानी शुरू हुई है. देश में मोदी जी नये-नये कदम उठा रहे हैं ताकि भारत की समृद्धि बढ़े, विश्व में उसका नाम हो !  


आज वर्षा रुकी हुई थी सो स्कूल में बच्चों को बाहर मैदान में योग कराया. उन्हें योग दिवस के बार में भी बताया. दोपहर को लद्दाख की तस्वीरें देखीं, जानकारी हासिल की जो वहाँ जाने वाले यात्रियों के लिए आवश्यक है. वहाँ ठंड भी होगी और वर्षा भी. जलरोधी वस्त्र और जूते ले जाने होंगे. आज पुनः मन में एक खालीपन है, आश्चर्य भी होता है ऐसी अनुभूति पर, लेकिन ईश्वर के मार्ग पर तृप्ति का अर्थ है पूर्ण विश्राम. यानि रुक जाना, पर यहाँ तो चलते ही जाना है, इसका कोई अंत नहीं ! कल जून को गोहाटी जाना है दो दिनों के लिए. उसे अधिक समय मिलेगा साधना के लिए, पर साधना का लक्ष्य तो सभी के साथ एक्य की भावना का अनुभव करना ही है, जो वे इसी क्षण कर सकते हैं. वे विशिष्ट हैं, यही भाव तो उन्हें अलग करता है. इस सृष्टि में सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं, सभी की अपनी-अपनी भूमिका है, सभी महत्वपूर्ण हैं समान रूप से. यही भावना तो उन्हें परमात्मा के साथ भी जोड़ती है. परमात्मा साक्षी है, सभी पर समान कृपा करता है पर जो उससे प्रेम करता है अर्थात स्वयं को विशिष्ट नहीं मानता, उससे वह प्रेम से मिलता है. अस्तित्त्व उसका हो जाता है उतना ही, जितना वह अस्तित्त्व का !

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